महिला दिवस पर कविता Best Hindi Poem on Woman’s day
हमारे देश की महान नारी
मर्यादा की रस्सियों में जकड़ी हुई
कुछ- कुछ कुंठित कुछ-कुछ सिकुड़ी हुई
सबकी खुशियों में हंसती हुई
अपने नारी होने के कर्तव्यों को पूरा करती हुई
कुछ-कुछ बनती कुछ-कुछ मिटती हुई
सुबह से शाम तक अपने ही घर में बने
नियमों के बोझ तले दबती हुई
संस्कारों मान मर्यादाओं में बंधी हुई
खुद को हर बार एक अच्छी नारी सिद्ध करती हुई
और सिद्ध न कर पाने पर दुनिया के तानों को सुनती हुई
कभी- कभी चारों तरफ खुद की तारीफों को सुनकर
सोचती है…
क्या किसी ने देखा है इन तारीफों के पीछे
छिपे हुए सन्नाटों को,
क्या किसी ने महसूस किया है
मरे हुए सुन्दर सपनों को
जीने की ख्वाइश को
और भी बहुत कुछ
जो सिर्फ उसके सीने में दफन है
हमारे देश की महान नारी
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