न जाने क्या है इस खामोशी का सबब
Hindi poetry on Silence
न जाने क्या है इस खामोशी का सबब
बस यही अच्छी लगने लगी है अब
खामोश सी आँखे खामोश मुलाकातें
बस यही बोलती रहती हैं अब
सबकुछ सुनकर भी
कुछ अनसुना छोड़ देना
आँखों के मंज़र को
एक नया मोड़ देना
बस यही गुफ़्तगू चलती रहती है अब
न जाने क्या है इस खामोशी का सबब
बस यही अच्छी लगने लगी है अब
कुछ बेतुकी सी बातों में
कुछ नया ढूँढ लेना
जागती हुई नींदों से
सपने चुरा लेना
आँसूँ की बूँदों में
मोती तलाश लेना
बस यही बहस तारों से चलती रहती है अब
न जाने क्या है इस खामोशी का सबब
बस यही अच्छी लगने लगी है अब
दोस्तों कभी- कभी ख़ामोश रहना कितना अच्छा लगता है हमें पता नहीं चलता कि इस ख़ामोशी का सबब क्या है हमेशा हमें पता नहीं होता कि हमारे अंदर क्या चल रहा है। कभी-कभी ख़ुद को समझ पाना भी बहुत मुश्किल हो जाता है। जीवन में ख़ामोश रहना भी बहुत आवश्यक होता है ख़ामोश बैठकर ख़ुद के बारे में सोचना कि आख़िर हम कहाँ हैं और कहाँ जाना चाहते हैं। कौन – कौन कौन सी बातों में हम सही हैं और कहाँ हम ग़लत हैं।एक ख़ामोशी ही है, जिसमें हमें अपने बारे में सोचने का मौक़ा मिलता है।
हम हमेशा ज़िंदगी की भागदौड़ में दूसरों के बारे में जानने में अपना वक़्त बर्बाद करते रहते हैं , जबकि सबसे ज़्यादा हमें ज़रूरत है हमें ख़ुद को मानने की, दूसरों से ज़्यादा ख़ुद को मनाने की। बाहर से हम कितना भी ख़ुद को शक्तिशाली दिखाएँ पर सच तो ये हैं हम अंदर से डरे हुए होते हैं।
इसलिए ये ख़ामोशी बेहद ज़रूरी है।
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Best poem
Bahut se log khamosh samandar hote hai