सहायता ही सबसे बड़ा कर्म है ।।Moral Hindi Story on help ।। Hindi story of Kabeerdas
कबीरदास जी एक रहस्यवादी कवि थे। कबीरदास जी के दोहे आज भी सारे भारतवर्ष में प्रसिद्ध हैं। उनके एक- एक दोहे में जीवन का सार छिपा हुआ है।
वे बहुत ही सादगी से जीवन जीते थे। सारे देश में अच्छी ख़ासी ख्याति प्राप्त होने के वावजूद वे बड़ी ही सरलता और सादगी से जीवन जीते थे। वे पहले की ही तरह साधारण कपड़े पहनते थे और ग़रीबों के लिए कपड़े बुनते थे।
एक बार की बात है उनके पास कई बड़े-बड़े सेठ आए और बोले- अब आप साधारण व्यक्ति नहीं हैं जब तक आप साधारण व्यक्ति थे। तब तक आपका इस तरह पुराने कपड़े पहनना कपड़ा बुनने का काम करना ठीक था मगर अब आप एक प्रसिद्ध कवि हैं। आपकी प्रसिद्धि दूर- दूर तक फैली है।
आपको इस हाल में देख हमें शर्म आती है। आप अपने हाथ से कपड़ा क्यों बुनते हैं अगर आपको कुछ ज़रूरत है तो हमें बताइए हम आपकी हर ज़रूरत को पूरा करेंगे।
आप कहें ,तो हम आपके लिए एक बड़ा आश्रम भी बनवा सकते हैं।
कबीरदास जी बड़े ही ध्यान से उनकी बातें सुन रहे थे।
वे बोले- आपको मेरे ऊपर शर्म आती है लेकिन आप लोगों की बातें सुनकर मुझे आप पर शर्म आ रही है। आप लोग इतने स्वार्थी कैसे हो सकते हैं।
पहले जब मैं ग़रीब था तब मैं अपने लिए कपड़ा बनता था, मगर अब जब मेरे पास सबकुछ है तो मैं ग़रीबों के लिए कपड़ा बुन रहा हूँ। मुझे देख अन्य लोग भी ग़रीबों की मदद करने आगे आ रहे हैं और अन्य लोगों को देखकर कई और लोग मदद करेंगे। जिससे ग़रीबों का कुछ तो भला होगा।
आज हमारे देश बहुत सारे लोग ऐसे हैं जिनके पास पहनने के लिए कपड़ा नहीं है खाने के लिए भोजन नहीं है।
जब मैं उन्ही ग़रीबों में शामिल था अगर तब आप मेरी मदद करने आगे नहीं आए और आज जब मुझे आपकी मदद की ज़रूरत नहीं है तब आप लोग मेरी सहायता करने आए हैं।
अगर आप मेरी मदद करना चाहते हैं तो आप उन लोगों की सहायता करें जिन्हें वाक़ई में मदद की ज़रूरत है। काशी के घाट पर कितने लोग हैं जो रोज़ भूखे सोते हैं।
आप अगर समृद्ध हैं तो आप उन लोगों की मदद कीजिए आप लोगों के होते हुए इस शहर में कोई भी भूखा सोए ये कितने शर्म की बात है। आप लोग इन ग़रीबों की मदद के लिए कभी आगे नहीं आते हैं ।
आप सिर्फ़ उन लोगों की मदद के लिए आगे आते हैं जो पहले से ही प्रसिद्ध हैं इसका मतलब तो यही है की आप लोग अपना प्रचार करने के उद्धेश्य से यहाँ आए हैं।
कबीरदास जी की बातें सुनकर सभी सेठ बहुत शर्मिंदा हो गए, उन्हें अपनी ग़लती का एहसास हो गया।
उन्होंने उसी समय कबीरदास जी को वचन दिया कि वे रोज़ काशी के घाट पर ग़रीबों को खाना खिलाएँगे।
तब से काशी के घाट पर ग़रीबों को खाना खिलाने की परम्परा शुरू हुई जो आज भी जारी है। आज भी काशी के घाट पर ग़रीबों को खाना खिलाया जाता है।
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें सिर्फ़ अपनी सुख सुविधाओं के बारे में न सोच कर ग़रीबों की मदद भी करना चाहिए। पैसे वालों से व्यवहार बनाने के लिए उनकी मदद के हर कोई आगे आ जाता है लेकिन बात जब किसी ग़रीब की मदद की हो तो लोग हिचकिचाने लगते हैं।
इसलिए हमें हमारे आस- पास चाहे वह दोस्त हों या रिश्तेदार या फिर कोई अनजान ग़रीब जितना हमसे हो सके उतनी मदद का भाव ज़रूर रखना चाहिए।
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Heart touching story Dil bada hona chahiye sirf naam nahi
Thank u…
bahut hi prernadayak story hai
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