निदा फ़ाज़ली के मशहूर ग़ज़लें | Best Nida Fazli Shayari In Hindi
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता कहीं ज़मीं तो कहीं आसमां नहीं मिलता
1 :
सुना है मैंने !
कई दिन से तुम परेशां हो |
सुना है मैं ने!
कई दिन से तुम परेशाँ हो
किसी ख्याल में
हर वक्त खोई रहती हो |
गली में जाती हो
जाते ही लौट आती हो
कहीं की चीज़
कहीं रख के भूल जाती हो
किचन में !
रोज़ कोई प्याली तोड़ देती हो
मसाला पीस कर
सिल यूँही छोड़ देती हो
नसीहतों से ख़फ़ा
मश्वरों से उलझन सी
कमर में दर्द की लहरें
रगों में एैंठन सी
यकीन जानो !
बहुत दूर भी नहीं वो घड़ी
हर एक फ़साने का उनवाँ बदल चुका होगा
मेरे पलंग की चौड़ाई
घट चुकी होगी
तुम्हारे जिस्म का सूरज पिघल चुका होगा
2
होश वालों को खबर क्या बे-खुदी क्या चीज़ है
इश्क कीजे फिर समझिये जिंदगी क्या चीज़ है
उन से नज़रें क्या मिलीं रौशन फिजायें हो गयी
आज जाना प्यार की जादूगरी क्या चीज़ है
बिखरी जुल्फों ने सिखाई मौसमों को शायरी
MUST READ
झुकती आँखों ने बताया मय-कशी क्या चीज़ है
हम लवों से कह न पाए उन से हाले दिल कभी
और वो समझे नहीं ये ख़ामोशीयाँ क्या चीज़ है
3
ये फ़ासला
जो तुम्हारे और मेरे दरमियाँ है
हर इक ज़माने की दास्ताँ है
न इब्तिदा है
न इंतिहा है
मसफतों का अज़ाब सांसों का दाएरा है
न तुम कहीं हो
न मैं कहीं हूँ
तलाश रंगीन वाहिमा है
सफ़र में लम्हों का कारवाँ है
ये फासला !
जो तुम्हारे और मेरे दरमियाँ है
यही तलब है यही जज़ा है
यही ख़ुदा है। । Best Nida Fazli Shayari in Hindi
4
अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला
हम ने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला
एक बे- चेहरा सी उम्मीद है चेहरा चेहरा
एक तरफ देखिए आने को है आने वाला
उसको रुख्सत तो किया था मुझे मालूम न था
सारा घर ले गया घर छोड़ के जाने वाला
दूर के चाँद को ढूंडॊ न किसी आँचल में
ये उजाला नहीं आँगन में समाने वाला
इक मुसाफिर के सफर जैसे है सब की दुनिया
कोई जल्दी में कोई से जाने वाला
जब से करीब हो के चले जिंदगी से हम
खुद अपने आईने को लगे अजनबी से हम
कुछ दूर चल के रास्ते सब एक से लगे
मिलने गए किसी से मिल आए किसी से हम
अच्छे बुरे के फर्क ने बस्ती उजाड़ दी
मजबूर हो के मिलने लगे हर किसी से हम
शाइस्ता महफिलों की फ़ज़ाओं में ज़हर था
जिंदा बचे है ज़ेहन की आवारगी से हम
अच्छी भली थी दुनिया गुज़ारे के वास्ते
उलझे हुए हैं अपनी ही खुद-आगही से हम
जंगल में दूर तक कोई दुश्मन न कोई दोस्त
मानूस हो चले हैं मगर बम्बई से हम
मानूस हो चले हैं मगर बम्बई से हम
5
गरज-बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला
चिड़ियों को दाने बच्चों को गुड़- धानी दे मौला
दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है
सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी दे मौला
फिर रौशन का ज़हर का प्याला चमका नई सलीबें
झूटों की दुनिया में सच को ताबानी दे मौला
फिर मूरत से बाहर आकर चारों और बिखर जा
फिर मंदिर को कोई ‘मीरा’ दीवानी दे मौला
तेरे होते कोई किस की जान का दुश्मन क्यूँ हो
जीने वालों को मरने की आसानी से मौला
6
तू करीब आये तो कुर्बत का यूँ इज़हार करूँ
आइना सामने रख कर तिरा दीदार करूँ
सामने तेरे करूँ हार का अपनी एलान
और अकेले में तिरी जीत से इनकार करूँ
पहले सोचूं उसे फिर उस की बनाऊँ तस्वीर
और फिर उस में ही पैदा दर-ओ-दीवार करूँ
मेरे कब्ज़े में न मिट्टी है न बादल न हवा
फिर भी चाहत है कि हर शाख समर-बार करूं
सुबह होते ही उभर आती है सालिम हो कर
वाही दीवार जिसे रोज़ मैं मिस्मार करूं ।
Best Nida Fazli Shayari in Hindi
7
यूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास है
वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है
मुमकिन है लिखने वाले को भी ये खबर न हो
किस्से में जो नहीं है वही बात ख़ास है
माने न माने कोई हकीकत तो है यही
चरखा है जिस के पास उसी की कपास है
इतना भी बन संवर के न निकला करे कोई
लगता है हर लिबास में वो लिबास है
छोटा बड़ा है पानी खुद अपने हिसाब से
उतनी ही हर नदी है यहाँ जितनी प्यास है
8
कोई हंगामा उठाया जाए
बे-सबब शोर मचाया जाए
किस के आँगन में नहीं दीवारें
किस को जंगल में बुलाया जाए
उससे दो-चार बार और मिलें
जिसको दिल से न भुलाया जाए
मर गया सांप नदी खुश्क हुई
रेट का ढेर उठाया जाए
9
तू इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है
जहाँ भी जाऊं ये लगता है तेरी मफिल है
हर एक रंग तेरे रूप की झलक ले ले
कोई हंसी कोई लहजा कोई महक ले ले
ये आसमान ये तारे ये रास्ते ये हवा
हर एक चीज़ है अपनी जगह ठिकाने से
कई दिनों से शिकायत नहीं ज़माने से
मिरी तलाश तिरी दिलकशी रहे बाकी. ।
Best Nida Fazli Shayari in Hindi
9
खुदा का घर नहीं कोई
बहुत पहले हमारे गाँव के अक्सर बुजुर्गों ने
उसे देखा था
पूजा था
यहीं था वो
यहीं बच्चों की आँखों में
लहकते सब्ज़ पेड़ों में
वो रहता था
हवाओं में महकता था
नदी के साथ बहता था
हमारे पास वो आँखें कहाँ हैं
जो पहाड़ी पर
चमकती
बोलती
आवाज़ को देखें
हमारे कान बहरे हैं
हमारी रूह अंधी है
हमारे वास्ते
अब फूल खिलते हैं
न कोंपल गुनगुनाती है
न ख़ामोशी अकेले में सुनहरे गीत गाती है
हमारा अहद !
माँ के पेट से अंधा है बहरा है
हमारे आगे पीछे
मौत का तारीक पहरा है
MUST READ
न जाने क्या है इस खामोशी का सबब
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