चिपको आन्दोलन | Chipko Movement information in Hindi
सन 1974 में चिपको आन्दोलन की शुरुआत हुई । यह वह समय है।
जब इलाहबाद स्थित खेल का सामान बनाने वाली एक कंपनी ‘साईंमंड’ को एक ठेका मिला था।
जिसमें चमोली जिले में लगे अंगूर प्रजाति के वृक्षों को काटना था ।
अंगूर प्रजाति के वृक्षों का प्रयोग कृषि उपकरण बनाने में किया जाता था ।
इस वृक्ष की लकड़ी वहां की स्थानीय जनता के लिये निषिद्ध कर दी गयी थी ।
चमोली के रेणी गाँव के सेकड़ों एकड़ की वन क्षेत्र की नीलामी की बात से जनता बहुत दुखी थी ।
जब वन कर्मी और वन श्रमिक रेणी गाँव पहुंचे तो रेणी गाँव में खलवली मच गयी ।
तब एक महिला ने अपना साहस दिखाया और वह वृक्षों को काटने से रोकने के लिये आगे आयी ।
उस महिला का नाम गौरा देवी था । गौरा देवी ने घर-घर जाकर सभी लड़कियों और महिलाओं
को प्रतिरोध करने के लिये सबको जागरूक किया । गौरादेवी और मुरारीलाल के नेतृत्व में 27
महिलाएं और लडकियाँ आगे आई और जैसे ही वनकर्मी पेड़ काटने आये तो वे पेड़ से चिपक गयी।
गौरादेवी के नेतृत्व में वृक्षों को बचाने के लिये इस अहिंसक मार्ग ‘चिपको’ का प्रयोग किया गया ।
महिलाओं का यह कहना था कि यह घना जंगल नहीं है यह हमारा मायका है ।
हम इसे काटने नहीं देंगे | वनकर्मी की बंदूके भी उनकी हिम्मत के आगे हार गयी ।
वृक्षों को काटने आये वनकर्मियों का हद्रय परिवर्तन हो गया । उन्होंने लगातार २ दिन व २ रात
जंगल को घेरे रखा और आने का एक मात्र पुल भी तोड़ दिया ।
26 मार्च सन 1974 की इस घटना के बाद रेणी गाँव चिपको आन्दोलन का कर्म क्षेत्र बन गया|
इस घटना के बाद पूरे उत्तराखंड में वन संरक्षण के लिये जनता में एक नया उत्साह देखने को मिला ।
इसके बाद सुन्दरलाल बहुगुणा ने चिपको आन्दोलन को गति प्रदान करने के लिये 2800 किलोमीटर की
एक पग यात्रा की ।
आन्दोलनकारी का ऐसा रवैया देखते हुये सरकार ने रेणी गाँव के वनों को काटने पर
रोक लगा दी इसी के साथ उत्तरप्रदेश वन विकास निगम की स्थापना के साथ ही ठेकेदारी प्रथा का भी
अंत हो गया | चिपको आन्दोलन को राष्ट्रीय समर्थन मिला ।
ये भी जरुर पढ़ें:- मेहनत करने वालों की कभी हार नहीं होती
चिपको के कार्यकर्ताओं की मांग थी कि हिमालय क्षेत्र के वन संरक्षित रहे और इनकी इस मांग को
भी पूरा किया गया और हिमालय के हरे भरे जंगलों को अगले 15 साल तक के लिये काटने पर
रोक लगा दी गयी । चिपको आन्दोलन का दूसरा चरण था वृक्षारोपण को आगे बढ़ाया जाये ।
चिपको आन्दोलन को जन समर्थन प्राप्त होने के कारण वृक्षों की अंधाधुंध कटाई पर विराम
लग गया । बाद के वर्षों में यह आन्दोलन राजस्थान, बिहार , कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश और
विंध्य तक फ़ैल गया ।
चिपको आन्दोलन केवल संसाधनों के संरक्षण और वृक्षों को बचाने का ही उपाय नहीं था|
बल्कि जंगलों का संवर्द्धन, भूमि की उर्वरा शक्ति में बृद्धि एवं वन्य जीवों के शिकार में भी नियंत्रण
के लिये कारगार सिद्ध हुआ | इस आन्दोलन का कार्य क्षेत्र अब केवल भारत ही नहीं था |
बल्कि स्विट्जरलैंड, जर्मनी भी बन गया था | इस आन्दोलन में महिलाओं की भागीदारी
उल्लेखनीय रही ।
चिपको आन्दोलन ने यह सिद्ध कर दिया कि समस्याओं का निदान केवल कानून बनाने से ही नहीं
होता है बल्कि इसके लिये लोगों की चेतना और अधिकारों की समझ होना भी अत्यंत आवश्यक है ।
सन 1920 में कुमाऊँ विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर डाक्टर शेखर पाठक के कहने अनुसार
चिपको आन्दोलन की वजह से केंद्र सरकार में पर्यावरण मंत्रालय का गठन हुआ ।
ये भी जरुर पढ़ें:-
गौतम बुद्ध के अनुसार उत्तम व्यक्ति की पहचान
Friends अगर आपको ये Post ” चिपको आन्दोलन | Chipko Movement information in Hindi “
पसंद आई हो तो आप इसे Share कर सकते हैं।
कृपया Comment के माध्यम से हमें बताएं आपको ये Post कैसी लगी।
FOR VISIT MY YOUTUBE CHANNEL
ऐसी ही कई शिक्षाप्रद कहानियाँ सुनने के लिए हमारे चैनल ज्ञानमृत को ज़रूर Subscribe करें।
ऐसी ही कई कविताएँ सुनने के लिए हमारे चैनल Dolafz Hindi Shayari ko Subscribe करना न भूलें।
Speak Your Mind