महिला दिवस पर कविता खुद की खोज़
Emotional Hindi Poetry for woman
आज चाहा खोजना…
खुद को- खुद ही के वास्ते
बड़ी बड़ी मुश्किलें सामने आकर खड़ी थीं
मैं :-
एक बेटी थी, बहन थी, प्रेमिका थी,
माँ थी, पत्नी थी, बहू थी
और भी न जाने क्या क्या थी…
पर बस मैं- मैं नहीं थी
कि जैसे कपड़ो की तह बनाकर
मैं खुद को ही बंद कर देती हूँ
अलवारी के अन्दर
कि जैसे घर को साफ़ करते हुये
झाड़ू लगा देती हूँ अपनी इक्षाओं पर
कि जैसे कुकर की शीटी
मेरे ही मौन का उत्तर हो
कि जैसे बचाकर चुराकर रखे हुये पैसे
मेरा ही उपहास उड़ा रहे हों
कि जैसे पूरा का पूरा घर मेरा है
पर मेरी ही निजता का कोना
कहीं नहीं दिखता धरातल पर
जब- जब मैंने कोशिश की
खुद को ढूढ़ने की…मैंने पाया
मैं होती गई-
बुरी बेटी, बुरी बहन, बुरी प्रेमिका
बुरी पत्नी, बुरी माँ और एक बुरी बहू…
और भी न जाने क्या-क्या…
क्या बंद हो गये हैं सारे दरवाजे
कौन रोक रहा है मुझे
अपने ही अन्दर जाने से
क्या मेरी निजता इतनी महँगी है
कि मैं नहीं खरीद सकती
अपनी ही आज़ादी…
अपने आप से—–
MUST READ
न जाने क्या है इस खामोशी का सबब
कुछ नहीं कहना है कुछ नहीं सुनना है
तनहाँ सी ज़िंदगी
तुम भी क्या ख़ूब कमाल करते हो
हमारे देश की महान नारी
क्य वाक़ई में भारत आज़ाद हो गया है
ये ख़ामोशी ये रात ये बेदिली का आलम
कभी कभी अपनी परछाईं से भी डर लगता है
मैंने चाहा था चलना आसमानों पे
कविता लिखी नहीं जाती लिख जाती है
अभी अभी तो उड़ान को पंख लगे हैं मेरी
Must Watch
Name: Venus Singh
Profession: Teacher
We are grateful to Venus Singh for sharing this beautiful Poetry with us.
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बहुत ही अच्छी कविता है
Thanks to venus singh
दो लफ्ज़ डॉट कॉम पर Venus Singh जी की ये कविता बहुत ही पसंद आई. इस कविता में नारी के विभिन्न रूपों का अच्छा वर्णन किया गया है.
Thank you sir…
Touching words
Thank you…
thank u…
nice poem keep writing
Thank you…