दुनिया कहाँ से कहाँ निकल गई Hindi Poems | Kavita | Famous Poetry in Hindi हिंदी शायरी
दुनिया कहाँ से कहाँ निकल गई
मैं आज भी वहीं का वहीं खड़ा हूँ
परिवर्तन ही प्रकृति का नियम है
फिर भी मैं वहीं रुका सा गया हूँ
शायद ये कुछ संकुचित सोच है मेरी
जो मैं संभलकर भी गिर रहा हूँ
क्यूँ नहीं समझ पाता हूँ मैं कि
अगर मैं रुक भी गया तो क्या होगा
जिन्दगी तो चलती ही रहेगी
तो क्यों न एक नई सोच के साथ
जिन्दगी का थाम के हाथ
चल पडूं बहुत आगे बहुत दूर
जहाँ सिर्फ मैं खुद के साथ खुश रहूँ
एक ऐसी राह जहाँ खुश होने के लिए
वजहों की जरूरत ही न हो
दुनिया का क्या है वह चलती ही रहेगी
दूर से जो चलती दिखाई दे रही है
उनमें से कितने ही मुझ जैसे रुके हुए होंगे
मगर मैं इस भीड़ में शामिल नहीं
क्योंकि चलना ही जिन्दगी है
पीछे मुडकर देखा तो डर होगा,
आगे गिर जाने का, बिखर जाने का
अब वक्त है दुनिया को छोड़कर
खुद में समा जाने का
आज मान ही लेता हूँ कि
दुनिया कहीं भी जाए
अब तक मैं अकेले ही तो लड़ा हूँ
खुद को रखने के लिए उम्दा
मैं अब भी बहुत बड़ा हूँ
दुनिया कहाँ से कहाँ निकल गई…
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Hi
Great thought very inspiring lines
Mam pls do write ur words on this .this is also beautiful
Waiting for surprising
कभी-कभी सोचता हूँ तो खुद को तन्हा पाता हूँ;
क्या आज तन्हाइयां ही मेरे जीने का सबब बन गई हैं…?
बहुत उम्दा पंक्तियाँ हैं आपकी प्रियंका जी.
MY DEAR IDEAL DIDI PRIYNKA JI APNE JIVAN KO KAMAL KE SAMAN PAVITRA OR KHUSHIYO SE BHARPUR BANANE KE LIYE AAP PRAJAPITA BRAHMAKUMARIY ISWARIYA VISWAVIDYALYA SE JUDE .SWAM BHAGVAN YAHA PAR SABHI KE JIVAN KO KHOOVSURT BANATE HAI .AAP BEING BLISS AWAKING WITH BRAHMAKUMAIS OR SAMADHAN BK.SURAJ BHAI KE PROGRAM .DEKHE .PEACE OF MIND CHANNEL KO JARUR DEKHA KRO JIVAN KHUSHIYO SE BHARPUR HO JAYEGA . OM SHANTI BK SATYAM
Thank you…
Thank you Satyam
Hi
mam to kuch Socha apney kuch apkey thoughts
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