अहमद फ़राज़ के बेहतरीन शेर
Famous Sher of Ahmad faraz
अबके हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वावों में मिले
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले
हुआ है तुझसे बिछड़ने के बाद ये मालूम
कि तू नहीं था तेरे साथ एक दुनिया थी
वो बात बात पे देता है परिंदों की मिसाल
साफ़ साफ़ नहीं कहता मेरा शहर ही छोड़ दो
तुम्हारी एक निगाह से कतल होते हैं लोग फ़राज़
एक नज़र हम को भी देख लो के तुम बिन ज़िन्दगी अच्छी नहीं लगती
उस शख्स से बस इतना सा ताल्लुक़ है फ़राज़
वो परेशां हो तो हमें नींद नहीं आती
बर्बाद करने के और भी रास्ते थे फ़राज़
न जाने उन्हें मुहब्बत का ही ख्याल क्यूं आया
बच न सका ख़ुदा भी मुहब्बत के तकाज़ों से फ़राज़
एक महबूब की खातिर सारा जहाँ बना डाला
ये मुमकिन नहीं की सब लोग ही बदल जाते हैं
कुछ हालात के सांचों में भी ढल जाते हैं
ये वफ़ा उन दिनों की बात है फ़राज़
जब लोग सच्चे और मकान कच्चे हुआ करते थे
दीवार क्या गिरी मेरे कच्चे मकान की फ़राज़
लोगों ने मेरे घर से रास्ते बना लिए
कभी टूटा नहीं मेरे दिल से आपकी याद का तिलिस्म फ़राज़
गुफ़्तगू जिससे भी हो ख्याल आपका रहता है
मेरे लफ़्ज़ों की पहचान अगर कर लेता वो फ़राज़
उसे मुझ से नहीं खुद से मुहब्बत हो जाती
अक्ल वालों के मुक़द्दर ये ज़ोक-ए-जुनूं कहाँ फ़राज़
ये इश्क वाले हैं जो हर चीज़ लुटा देते हैं
रूठ जाने की अदा हम को भी आती है फ़राज़
काश होता कोई हम को भी मनाने वाला
अकेले तो हम पहले भी जी रहे थे “फ़राज़”
क्यूँ तन्हा से हो गए हैं तेरे जाने के बाद
चढते सूरज के पुजारी तो लाखों हैं ‘फ़राज़’
डूबते वक़्त हमने सूरज को भी तन्हा देखा
कौन परेशां होता है तेरे ग़म से फ़राज़
वो अपनी ही किसी बात पे रोया होगा
किस किसको बताएँगे जुदाई का सबब हम
तू मुझसे ख़फ़ा है तो ज़माने के लिए आ
रंजिश ही सही दिल ही दुखाने के लिए आ
आ फिर से मुझे छोड़ के जाने के लिए आ
हम अपनी रूह तेरे जिस्म में छोड़ आए फ़राज़
तुझे गले से लगाना तो एक बहाना था
एक नफ़रत ही नहीं दुनिया में दर्द का सबब फ़राज़
मोहब्बत भी सुकूँ वालों को बड़ी तकलीफ़ देती है
ज़माने के सवालों को मैं हंस के टाल दूँ फ़राज़
लेकिन नमीं आँखों की कहती है कि “तुम याद आते हो”
मंज़िलें दूर भी हैं मंज़िलें नज़दीक भी हैं
अपने ही पाँव में ज़ंजीर पड़ी हो जैसे
इतनी सी बात पे दिल की धड़कने रुक गयीं फ़राज़
एक पल भी तसव्वुर किया तेरे बिना जीने का
इस तरह ग़ौर से न देख मेरा हाथ फ़राज़
इन लकीरों में हसरतों के सिवा कुछ भी नहीं
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waaah bahut khoob faraz sahab ki baat aur hai