निदा फ़ाज़ली के मशहूर शेर।
Famous sher of Nida fazli । हिंदी शायरी
निदा फ़ाज़ली हिंदी और उर्दू के प्रसिद्ध शायर होने के साथ साथ एक बेहद ही कुशल गीतकार भी थे। जब देश का विभाजन हुआ, तो उनका पूरा परिवार पाकिस्तान में बस गया।लेकिन निदा फ़ाज़ली ने न सिर्फ़ भारत में रहने का फ़ैसला किया बल्कि यहीं के होकर रह गये। आज निदा साहब हमारे बीच नहीं है लेकिन उनके शेर आज भी ज़िंदा है।
कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता
कहीं ज़मीं कही आसमां नहीं मिलता
कुछ तबियत ही मिली थी ऐसी चैन से जीने की सूरत न हुयी
जिसको चाहा उसे अपना न सके जो मिला उससे मोहब्बत न हुयी
हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना
कुछ लोग यूंही शहर में हमसे भी ख़फा हैं
हर एक से अपनी भी तबियत नहीं मिलती
बच्चों के छोटे हांथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़कर ये भी हम जैसे हो जायेंगे
यहाँ किसी को कोई रास्ता नहीं देता
मुझे गिरा के अगर तुम संभल सको तो चलो
उसके दुश्मन हैं बहुत आदमी अच्छा होगा
वो भी मेरी ही तरह सहर में तनहा होगा
धूप में निकलो घाटों में नहाकर देखो
जिंदगी क्या है किताबों को हटाकर देखो’
दुश्मनी लाख सही खत्म न कीजे रिश्ता
दिल मिले या न मिले हाथ मिलाते रहिये
अब ख़ुशी है न कोई दर्द रुलाने वाला
हमने अपना लिया हर रंग ज़माने वाला
अपनी मर्ज़ी से कहाँ अपने सफर के हम हैं
रुख हवाओं का जिधर का है उधर के हम है
हर से मस्ज़िद है बहुत दूर चलो यूँ कर लें
किसी रोते हुये बच्चे को हंसाया जाये
सब कुछ तो है क्या ढूंढती रहतीं हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक्त पे घर क्यों नहीं जाता
एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती है शरीक
जिसको भी पास से देखोगे अकेला होगा
तुमसे छूट कर भी तुम्हें भुलाना आसान न था
तुमको ही याद किया तुमको भुलाने के लिये
MUST READ
कभी कभी अपनी परछाईं से भी डर लगता है
मैंने चाहा था चलना आसमानों पे
कविता लिखी नहीं जाती लिख जाती है
अभी अभी तो उड़ान को पंख लगे हैं मेरी
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दौलतें इतनी न कमाई जाए कि दम घुटने लगे,
चेहरा इतना न छुपाया जाए कि #अस्तित्व मिटने लगे।।
#सिद्धार्थ_राय