गणेश चतुर्थी पर निबंध ।। Ganesh Chaturthi Essay in Hindi

गणेश चतुर्थी पर निबंध

Ganesh Chaturthi Essay in Hindi

गणेश चतुर्थी पर निबंध ।। Ganesh Chaturthi Essay in Hindi

गणेश चतुर्थी पर निबंध ।। Ganesh Chaturthi Essay in Hindi

णेश चतुर्थी को हम विनायक चतुर्थी के नाम से भी जानते है। यह एक हिन्दू त्यौहार है जो भगवान गणेश का सम्मान करने के लिये मनाया जाता है 

यह दस दिवसीय त्यौहार है। यह हिंदू लूनी-सौर कैलेंडर महीने के चौथे दिन भद्रपद के दिन मनाया जाता है, जो आमतौर पर ग्रेगोरियन कैलेंडर के अगस्त या सितंबर के महीनों में पड़ता है।

यह त्यौहार हम घरों में निजी रूप से गणेश जी की मिट्टी की मूर्तियों की स्थापना करके मनाते हैं। सार्वजनिक रूप से मनाने विस्तृत पंडाल स्थापित किया जाता है।

यह त्यौहार दस दिनों तक चलता है। अंतिम दिन  मूर्ति को विसर्जन के लिए  संगीत और समूह के साथ सार्वजनिक जुलूस के साथ ले जाया जाता है, फिर नदी या समुद्र के पानी में उनका  विसर्जन किया जाता है।

 मुंबई में हर वर्ष  लगभग 150,000 प्रतिमाएं सालाना विसर्जित होती हैं। उसके बाद मिट्टी की मूर्ति को पानी में समर्पित किया जाता है।

मनाने का कारण

इस त्यौहार को मनाने का यह कारण है कि भगवान गणेश इस दिन से अपने भक्तों की जिंदगी की नई शुरुआत करते है। भगवान, भक्तों की बाधाओं को दूर करने के साथ-साथ लोगों का ज्ञान और उनकी बुद्धि भी बढ़ाते है और यह त्यौहार पूरे भारत में मनाया जाता है,

Ganesh Chaturthi Essay in Hindi

खासकर महाराष्ट्र, गोवा, तेलंगाना, गुजरात और छत्तीसगढ़, और आमतौर पर कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और
मध्य प्रदेश जैसे राज्यों में घर पर निजी तौर पर भी भगवान को भक्त अपने घरों में बिठाते है।

गणेश चतुर्थी को नेपाल में और मॉरीशस, संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोप में भी मानते हुये देखा गया है।

इस त्यौहार में सार्वजनिक स्थानों पर ग्रंथों को पढ़ने के साथ-साथ एथलेटिक और मार्शल आर्ट प्रतियोगिताये भी आयोजित की जाती हैं।

गणेश चतुर्थी की कथा:

इस दिन कई लोग उपवास रखते हैं। एक बार महादेवजी पार्वती माता के साथ नर्मदा नदी के तट पर अत्यंत सुंदर स्थान पर गए।  वहाँ माता पार्वती  ने  महादेवजी के साथ  चौपड़ खेलने की इच्छा जतायी।

तब भगवान शिव ने माता पार्वती  से कहा- हमारी हार-जीत का फैसला कौन करेगा ? माता पार्वती ने तुरंत ही वहाँ की घास के तिनके बटोरकर ले  लिये और एक पुतला बना दिया और उसमें प्राण-प्रतिष्ठा कर दी।

 उस पुतले से कहा- बेटा ! हम चौपड़ का खेल खेलना चाहते हैं, परन्तु यहाँ हार-जीत का को दर्शाने के लिये कोई नहीं है। इसलिए खेल खत्म होने के बाद अन्त में तुम ही हमारी हार और जीत का फैसला बताओगे कि हम दोनों में से कौन जीता और कौन हारा ?

खेल शुरू हुआ। दैवयोग से तीनों बार पार्वती जी की ही जीत हुई। अंत में बालक से हार-जीत का निर्णय करने को कहा गया तो उसने महादेवजी को विजयी बता दिया।

परिणामतः पार्वती जी को गुस्सा आ गया। 

उन्होंने उसे एक पाँव से लंगड़ा होने और वहाँ के कीचड़ में पड़े रहने का शाप दे दिया।

बालक ने आदर के साथ कहा- “माँ! मुझसे गल्ती से ऐसा हो गया है। मैंने किसी द्वेष भाव के कारण ऐसा नहीं किया। मुझे आप क्षमा करें तथा अपने शाप से मुक्ति के लिये कोई उपाय बताएँ।”

तब ममतावश माँ को उस नन्हे बालक पर दया आ गई औरउन्होंने कहा- यहाँ नाग- कन्याएँ गणेश जी का पूजन करने के लिये आएँगी। उनके उपदेश सुनकर तुम गणेश व्रत करके
मुझे प्राप्त कर लोगे। बस इतना कहकर वे कैलाश पर्वत की ओर चली गईं।

एक साल के बाद वहाँ श्रावण मास में नाग-कन्याएँ गणेश जी का पूजन करने के लिए आईं। नाग-कन्याओं ने गणेश व्रत किया और उस बालक को भी इस व्रत की विधि बताई। उसके बाद उस बालक ने 12 दिन तक श्री गणेश जी का व्रत किया। तब भगवान् गणेश जी ने उसे दर्शन देकर कहा- बेटा मैं तुम्हारे व्रत से खुश हुआ हूँ। अपने मन से कोई वर माँगो।

बालक बोला- भगवान् मेरे दोनों पैरों में इतनी ताकत दे दो कि मैं कैलाश पर्वत पर रहने वाले अपने माता- पिता के पास तक पहुँच सकूं और वे मुझ से प्रसन्न हो जाएँ।

गणेश जी ने तथास्तु कहा और वहां से वे अंतर्धान हो गये और इस तरह बालक भगवान शिव के चरणों में पहुँच गया। शिवजी ने उससे वहाँ तक पहुँचने के साधन के बारे में पूछा।
तब बालक ने सारी कथा शिव जी को सुना दी। और उसी दिन से अप्रसन्न होकर पार्वती माता शिवजी से भी रूठ गई थीं।

उसके बाद भगवान शंकर ने भी बालक की के जैसे ही २१ दिन तक श्री गणेश जी का व्रत किया, इसके प्रभाव से पार्वती माता के मन में भी स्वयं ही महादेव जी से मिलने की इच्छा जागी।
वे शीघ्र ही कैलाश पर्वत पर आ गयी। वहाँ पहुँचकर माता पार्वती जी ने शिवजी से पूछा- भगवन! आपने ऐसा कौन-सा उपाय कर दिया कि मैं आपके पास भागी-भागी आ गई। शिवजी ने गणेश व्रत के  इतिहास के बारे में उन्हें बताया।

तब पार्वतीजी ने अपने पुत्र कार्तिकेय से मिलने की इच्छा में 21 दिन व्रत किया जिससे 21 वे दिन कार्तिकेय स्वयं ही अपनी माता से पार्वती जी से मिलने आ गये फिर कार्तिकेय ने इस व्रत को विश्वामित्र जी को बताया।

विश्वामित्र जी ने व्रत किया और गणेश जी से जन्म से मुक्त होकर
ब्रह्म-ऋषि बनने का वर माँग लिया। गणेशजी ने उनकी भी मनोकामना पूर्ण की। ऐसे हैं हमारे श्री गणेश जी भगवान् , जो सभी भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते हैं।

 

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