गुलज़ार की प्रसिद्ध शायरी । Gulzaar Shayari in Hindi । गुलज़ार की कविताएँ

गुलज़ार की प्रसिद्ध शायरी ।

Gulzaar Shayari in Hindi । गुलज़ार की कविताएँ

गुलज़ार की प्रसिद्ध शायरी । Gulzaar Shayari in Hindi । गुलज़ार की कविताएँ

गुलज़ार की प्रसिद्ध शायरी । Gulzaar Shayari in Hindi । गुलज़ार की कविताएँ

 

1 :

आँखें

तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें

तेरी आँखों से ही तख़लीक़ हुई है सच्ची

तेरी आँखों से ही तख़लीक़ हुई है ये हयात

तेरी आँखों से ही खुलते हैं, सवेरों के उफूक़

तेरी आँखों से बन्द होती है ये सीप की रात

तेरी आँखें हैं या सजदे में है मासूम नमाज़ी

तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें

पलकें खुलती हैं तो, यूँ गूँज के उठती है नज़र

जैसे मन्दिर से जरस की चले नमनाक सदा

और झुकती हैं तो बस जैसे अज़ाँ ख़त्म हुई हो

तेरी आँखें तेरी ठहरी हुई ग़मगीन-सी आँखें…

2:

यार जुलाहे यार जुलाहे

मुझको भी तरकीब सिखा कोई

यार जुलाहे

अक्सर तुझको देखा है कि ताना बुनते

जब कोई तागा टूट गया तो

और सिरा कोई जोड़ के उसमें

आगे बुनने लगते हो

तेरे इस ताने में लेकिन

इक भी गाँठ गिरह बुनतर की

देख नहीं सकता है कोई

यार जुलाहे यार जुलाहे

मैंने तो इक बार बुना था

एक ही रिश्ता

लेकिन उसकी सारी गिरहें

साफ़ नज़र आती हैं

मेरे यार जुलाहे…

मुझको भी तरकीब सिखा कोई

यार जुलाहे

3:

ख़्वाब टूटे न कोई, जाग ना जाए देखो

ख़्वाब टूटे न कोई, जाग ना जाए देखो

जाग जाएगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा..

ख़्वाब टूटे न कोई, जाग ना जाए देखो

देखो आहिस्ता चलो

और भी आहिस्ता ज़रा

काँच के ख़्वाब हैं बिखरे हुए तन्हाई में

ख़्वाब टूटे न कोई, जाग ना जाए देखो…

देखना सोच सँभलकर ज़रा पाँव रखना

जोर से बज न उठे, पैरों की आवाज़ कहीं

ख़्वाब टूटे न कोई, जाग ना जाए देखो

जाग जाएगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा..

ख़्वाब टूटे न कोई, जाग ना जाए देखो

जाग जाएगा कोई ख़्वाब तो मर जाएगा..

4 :

एक पुराना मौसम लौटा, याद भरी पुरवाई भी

ऐसा तो कम ही होता है वो भी हो तनहाई भी

यादों की बौछारों से जब पलकें भीगने लगती हैं

कितनी सौंधी लगती है तब माज़ी की रुसवाई भी

ऐसा तो कम ही होता है वो भी हो तनहाई भी

दो-दो शक़्लें दिखती हैं इस बहके से आईने में

मेरे साथ चला आया है आप का इक सौदाई भी

ऐसा तो कम ही होता है वो भी हो तनहाई भी

ख़ामोशी का हासिल भी इक लम्बी सी ख़ामोशी है

उनकी बात सुनी भी हमने अपनी बात सुनाई भी

ऐसा तो कम ही होता है वो भी हो तनहाई भी

5 :

शाम से आँख में नमी सी है

आज फिर आप की कमी सी है

दफ़्न कर दो हमें के साँस मिले

नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है

वक़्त रहता नहीं कहीं टिक कर

इस की आदत भी आदमी सी है

कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी

एक तस्लीम लाज़मी सी है

कौन पथरा गया है आँखों में

बर्फ़ पलकों पे क्यों जमी सी है

आइये रास्ते अलग कर लें

ये ज़रूरत भी बाहमी सी है

अजनबी सी होने लगी हैं आती जाती साँसें

आँसुओं में ठहरी हुई हैं, रूठी हुई सी यादें

आज क्यों रात यूँ थमी थमी सी हैं

पत्थरों के होठों पे हमने नाम तराशा अपना

जागी जागी आँखों में भर के सोया हुआ था सपना

आँख में नींद भी थमी थमी सी हैं

 

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Comments

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