ग़रीबों की सेवा ही तीर्थयात्रा । Helping Others Hindi Moral Stories

ग़रीबों की सेवा ही तीर्थयात्रा । Helping Others Hindi Moral Stories

ग़रीबों की सेवा ही तीर्थयात्रा । Helping Others Hindi Moral Stories

ग़रीबों की सेवा ही तीर्थयात्रा। Helping Others Hindi Moral Stories

अपनी हज यात्रा पूर्ण करके आये एक दिन अब्दुला बिन मुबारक काबा में रात में ही सोये

हुये थे। तभी उन्होंने दो फरिश्तों को आपस में बातें करते हुये देखा एक फ़रिश्ते ने दूसरे से

पूंछा- इस साल हज के लिये कितने यात्री आये है और उनमें से कितने ऐसे मुसाफिर है

जिनकी दुआ कुबूल हुयी है।

 

दूसरे फ़रिश्ते ने कहा वैसे तो हज करने के लिये लाखों लोग आये थे मगर इन सभी में से दुआ

किसी की  भी कुबूल नहीं हुयी है|। इस वर्ष दुआ तो कुबूल हुयी है।  मगर वह भी ऐसे इंसान की है,

जो यहाँ आया ही  नहीं था।

 

यह सब सुनकर पहले फ़रिश्ते को बड़ा आश्चर्य हुआ उसने हैरानी के

साथ पूंछा –

 

भला वह कौन ऐसा खुशनसीब व्यक्ति है, जो, कि यहाँ आया भी नहीं है और उसकी दुआ भी

कुबूल की गयी। तब दूसरे फ़रिश्ते ने उसका नाम व उसका काम बताते हुये बोला- वह है

दम्शिक का मोची अली बिन मुफिक।

 

फ़रिश्ते की यह बातें सुनकर अब्दुला ने सोचा कि उस पाक पवित्र हस्ती से ज़रूर मिलना चाहिए।

मोची से मिलने को अब्दुला अगले ही दिन निकल गये। वे दम्शिक के लिये चल पड़े और वहां उनका

घर भी ढूँढ लिया।

 

अब्दुला बिन मुबारक ने वहां जाकर मोची से पूंछा क्या तुम हज को गये थे । इतना सुनते ही अली की

आँखें  आंसू से भर गयी न में सिर हिलाकर जबाब देते हुये कहा-मेरा मुकददर कहाँ, जो मैं हज को

जा पाता,  जिंदगी भर की मेहनत से कुछ पैसे हज जाने के लिये जमा किये थे।

 

मगर एक दिन सामने देखा कि पड़ोस में गरीब लोग पेट की आग बुझाने के लिये वे सारी चीजे

भोजन के रूप में खा रहे थे। जिन्हें कभी खाया ही नहीं जा सकता है।  उनसब की इस बेबसी ने

मेरा दिल हिला कर रख दिया।

 

हज के लिये जो रकम जमा की थी वो उन गरीबों में बाँट दी। अब हज पर जाऊं भी तो कैसे।  कोई

रास्ता  नजर नहीं आता। इसतरह अब्दुला बिन मुबारक समझ गये कि, उस शख्स को हज पर जाने

की कोई  जरूरत नहीं है। क्योंकि दीन-दुखियों की मदद ही सच्ची तीर्थयात्रा है ।

 

 

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