कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता
Hindi moral Story
एक बार की बात है एक संत थे, जिनका नाम तुकड़ोजी महाराज था एक दिन दोपहर के वक़्त वह अपनी कुटिया में विश्राम कर रहे थे, तभी एक शिष्य जिसका नाम रामचन्द्र था उनके पास आया। वह बहुत गुस्से में था।
शिकायत भरे लहजे में बोला- “गुरुदेव, लोग बड़े निर्लज्ज हो गए हैं. देखिये न आपकी कुटिया के सामने किसी व्यक्ति ने कटिंग सैलून खोला है और उसकी मुर्खता, देखिये उसका नाम रखा है ‘गुरुदेव सैलून’
आप उसे फ़ौरन बुलवायें और नाम बदलने को कहिये, नहीं तो मैं उसकी दूकान को आग लगा दूंगा। शिष्य की बातें सुनकर तुकड़ोजी महाराज हंसने लगे, उसके बाद मुस्कुराकर शिष्य को बैठने को कहा।
समझाकर बोले- शिष्य तुम व्यर्थ ही क्रोध कर रहे हो। हनुमान जी ने इसलिए लंका जलाई क्यूंकि पापी रावण ने सीता जी का अपहरण करके उन्हें लंका में छिपा रखा था, उनके पास एक कारण था लंका जलने का।
”क्या इस सैलून वाले ने ऐसा कुछ किया है ? तुम उसकी दुकान जलाने की बात सोच रहे हो।”
उसने जो किया मुझे तो उसमे कोई बुराई नज़र नहीं आती। उसे जो नाम पसंद आया उसने रखा। वैसे भी वह अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए उस सैलून में बाल काटने का काम करता है मेरी नज़र में ये एक सत्कर्म है। उसका सैलून मंदिर के समान पवित्र है। “तुम क्या एक मंदिर को जलाओगे”
रामचंद्र चुप-चाप खड़ा सुन रहा था। तब गुरूजी बोले- आखिर तुम्हे उसके नाम पर आपत्ति क्यों है। नामकरण तो पिता द्वारा किया जाता है।
तुम्हारे पिता ने तुम्हारा नाम कुछ सोच समझकर रखा होगा, मगर प्रभु राम को तो तुम्हारे नाम पर कोई आपत्ति नहीं हुई।
रामचंद्र को गुरदेव की बात का आशय समझ आ गया था। वह बहुत लज्जित हुआ और उसने गुरुदेव से क्षमा मांगी।
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता। वह काम इंसान अपना कर्तव्यपालन करने के लिए और अपने परिवार का पालन पोषण करने के लिए करता है। इसलिए हमें किसी के भी काम को हीनदृष्टि से नहीं देखना चाहिए।
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