खुद से खुद की मुलाकात हिंदी कविता
Hindi poetry on feeling blessed
खुद से खुद की हुई है
मुलाकात जब से
अब किसी और की
जरुरत नहीं लगती
किसी और से बात
करूँ कैसे
जब खुद से ही
फुर्सत नहीं मिलती
जब से देखा है
खुद की कमियों को
अब किसी और की
कमियाँ नहीं दिखती
जब से खुद को
मना लिया हमने
जमाने को मनाने
की फितरत नहीं लगती
जब से खुद के करीब
आये हैं हम
खुश रहने के लिए वजहों की
जरुरत नहीं लगती
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Nice Poem. इसे पढ़कर कबीरदास जी की याद आ गई। उनके दोहे तो प्रसिद्ध ही है। आपने और अच्छे से समझा दिया।
Thank priyanka
Thanks priyanka ji…