राममनोहर लोहिया के कर्तव्यपालन की कहानी Hindi story Dr Ram Manohar Lohia
बहुत पुरानी बात है। राममनोहर लोहिया जी के पिताजी की मृत्यु हो गई थी। उनके मित्रो को जैसे ही उनके पिताजी की मृत्यु का समाचार मिला वे प्रयास करने लगे कि सरकार लोहिया जी को पैरोल पर छोड़ दे।
ताकि वे अपने पिताजी को भावपूर्ण श्रद्धांजलि दे सकें। आखिर उनके मित्र अपनी कोशिश में कामयाब रहे. सरकार उन्हें छुट्टी देने के लिए राजी हो गई । अधिकारी उपकार के रूप में उन्हें छुट्टी देने के लिए राजी हो गये।
जैसे कि वे उन पर विशेष कृपा कर रहे हैं।
लोहिया जी पिताजी की मृत्यु के दुख से उबरने का प्रयत्न करते हुये बैठे थे, तभी एक मित्र ने उन्हें रिहाई की खबर दी,
और कहा – अब जाने की तैयारी करो ।
लोहियाजी बोले- रिहाई किसकी और क्यों ?
तब मित्र बोला – “क्या तुम अपने पिताजी को श्रद्धांजलि देने नहीं जाना चाहते।”
लोहिया जी बोले – कर्तव्य से पलायन को श्रद्धांजलि का नाम मत दो मुझे किसी की दया नहीं चाहिये। मेरे पिताजी सारी उम्र आदर्शों के
लिये लड़ते रहे ।
इन आदर्शों को ठुकरा कर मैं उन्हें श्रद्धांजलि कैसे दूंगा । ये कहते- कहते ही उनकी आँखों में आँसू आ गये। मैं अपने आदर्शों का पालन करके इसी रूप में यहीं से पिताजी को श्रध्धांजलि अर्पण करूँगा।
लोहिया जी को इस सच्ची श्रद्धांजलि की प्रखरता के आगे कागज के छोटे से टुकड़े पर लिखे शब्द निश्तेज पड़ चुके थे ।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें न सिर्फ आदर्शों की बात करनी चाहिये बल्कि हमें अपने आदर्शों पर हमेशा चलना चाहिये।
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