Hindi Story of doctor Sarvepalli Radhakrishnan अनेकता में एकता पर कहानी
बहुत पुरानी बात है । सर्वपल्ली डॉ.राधाकृष्ण बहुत छोटे थे । वे मद्रास के एक ईसाई मिशनरी स्कूल में पढ़ते थे। एक बार वह अपनी कक्षा में पढाई कर रहे थे,जो अध्यापक पढ़ा रहे थे, वे ईसाई थे।
उनकी मनोवृति बहुत ही संकीर्ण थी। वह पढ़ाते- पढ़ाते विद्यार्थियों को धर्म के बारे में बताने लगे और साथ ही साथ हिन्दू धर्म पर कटाक्ष करने लगे। वे हिन्दू धर्म को दकियानूसी, अन्धविश्वासी , रूढ़िवादी और भी बहुत कुछ कहने लगे।
राधाकृष्ण अपने अध्यापक की बातें गौर से सुन रहे थे। जब अध्यापक अपनी सारी बात बोलकर चुप हुए,
तब राधाकृष्ण खड़े होकर बोले सर मेरा एक प्रश्न है।
अध्यापक ने कहा बोलो क्या…पूछना चाहते हो ।
बालक राधाकृष्ण बोले – क्या आपका ईसाई मत दूसरों की निंदा करने में विश्वास रखता है ?
छोटे से बालक से इस तरह का प्रश्न सुनकर अध्यापक चोंक गये। बालक के प्रश्न में सत्यता थी चूँकि हर धर्म समानता और एकता का ही सन्देश देता है।
अध्यापक के पास कोई उत्तर नहीं था, इसलिए उन्होंने दूसरा प्रश्न बालक से किया ।
उन्होंने पुछा – क्या हिन्दू धर्म दूसरे धर्मों का सम्मान करता है ?
बालक ने उत्तर दिया- बिल्कुल महोदय हिन्दू धर्म अन्य धर्मों में कोई भी बुराई नहीं ढूंढता । इसका प्रमाण गीता में है,
गीता में श्री कृष्ण ने कहा है-
भगवान की आराधना के अनेक तरीके अनेक मार्ग हैं।
मगर उनका लक्ष्य एक ही है, क्या इस भावना में सभी धर्मों को अच्छा स्थान नहीं मिलता। कोई भी धर्म अन्य निंदा करने का पाठ कभी नहीं देता।
एक सच्चा धार्मिक व्यक्ति वह है, जो सभी धर्मों का सम्मान करे। राधकृष्ण का सवाल सुनकर अध्यापक ने फिर कभी इस तरह बातें न करने का प्रण कर लिया।
Speak Your Mind