Hindi Story of emotion ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की भावुकता की कहानी
बहुत पुरानी बात है। ईश्वरचन्द्र विद्यासागर बहुत छोटे थे उन दिनों वे स्कूल में पढ़ने जाते थे । उनकी माँ उनकी हर मांग पूरी करती थी क्योंकि वे भी अपनी माँ की हर बात मानते थे और समय पर पढ़ाई करते थे और खेलते भी निर्धारित समय पर थे।
एक दिन बचपन में जब वह अपने घर पर पढ़ाई कर रहे थे तभी उनके दरवाजे पर किसी ने खटखटाया ईश्वरचन्द्र किताब लेकर बाहर निकले। उन्होंने दरवाजा खोला तो देखा एक वृद्ध बुरेहाल औरत दरवाजे पर खड़ी थी।
उसने ईश्वरचन्द्र से कहा बेटा मुझे कुछ दे दो। उस बुजुर्ग महिला के मुंह से बेटा सुनकर ईश्वरचन्द्र भावुक हो गये और अपनी माँ के पास गये।
और बोले- माँ दरवाजे पर एक बहुत ही गरीब बुजुर्ग महिला खड़ी है वह कुछ मांग रही है, उसने मुझे बेटा पुकारा।
माँ ने ईश्वरचन्द्र से कहा बेटा खाना तो कुछ बचा नहीं है, तुम चाहो तो उसे चावल दे दो।
ईश्वरचन्द्र बोले थोड़े से चावल देने से उसका कुछ भला नहीं होगा । तुम एक काम करो अपने सोने के कंगन उसे दे दो। जो तुमने अपने हाथो में पहने हुये हैं। बेचारी का उससे कुछ तो भला होगा । मैं जब बड़ा हो जाऊँगा और पैसे कमाने लगूँगा तो दो कंगन तुम्हारे लिये बनवा दूँगा।
माँ ने ईश्वरचन्द्र का मन रखने के लिये वाकई में कंगन उतारकर दे दिये।
ईश्वरचन्द्र बहुत ही खुश हुये और ख़ुशी से वह कंगन गरीब बुजुर्ग माँ को दे दिये ।
ईश्वरचन्द्र जब बड़े हुये तो उन्होंने अपनी माँ से कहा – बचपन में मैंने तुमसे जो वादा किया था वह आज भी मुझे याद है , तुम मेरे साथ चलो में तुम्हे सोने के कंगन दिलवा देता हूँ ।
उनकी माँ बोली – में अब बहुत बूढ़ी हो गई हूँ। सोने के कंगन पहनना मुझे शोभा नहीं देगा ,अगर कुछ देना ही चाहते हो तो कोलकत्ता के गरीब बच्चों के लिये एक विद्यालय और एक चिकित्सालय बनवा दे जो निशुल्क हो ।
जो गरीब बच्चे शिक्षा और इलाज के लिये मारे – मारे फिरते है उनका कुछ भला हो जायेगा। ईश्वरचन्द्र ने अपनी माँ की बात मान ली और उनके आदेश का पालन किया।
आज देश के बड़े समाज सुधारक के रूप में उन्हें जाना जाता है।
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