अहंकार ही पतन का कारण । गणेश जी की कथा । Hindi Story of lord Ganesh

अहंकार ही पतन का कारण । गणेश जी की कथा । Hindi Story of lord Ganesh

अहंकार ही पतन का कारण । गणेश जी की कथा । Hindi Story of lord Ganesh

अहंकार ही पतन का कारण । गणेश जी की कथा । Hindi Story of lord Ganesh

देवराज इंद्र को आप सभी सभी जानते है उनके कोषाध्यक्ष जो कि देवराज इंद्र की अनुमति के बिना

अपने आपको देवकोष का मालिक मानने का भ्रम कर बैठे और धन का निजी उपयोग करने लगे।

वे एक दिन भगवान शिव के पास गये, और बोले मैं एक विशाल भोज का आयोजन करने जा रहा हूँ ।

 

मेरा मन है, कि मैं  इस भोज में सारे देवी, देवताओं  यक्ष, गन्धर्व  आदि सभी भाग ले और वहाँ  से

ख़ुशी-खुशी तृप्त होकर लौटे । आपका भी मेरे इस भोज में आप भी सपरिवार आमंत्रित है कृप्याकर

आप भी वहां पधारें।

 

यह सब सुनकर शिव जी समझ गये कि यह सब अहंकार है। कुवेर को अहंकार आ चुका है

उन्होंने कहा कि  कुवेर जी मैं तो नहीं आ पाउँगा आपके भोज में। देवी पार्वती भी नहीं आ पाएंगी। पर

मैं आपके यहाँ पुत्र गणेश को मैं अवश्य भेज दूंगा ।

 

गणेश जी की कथा

भोज शुरू हुआ गणेश जी भोज में पहुंचे वे कुवेर से बोले मुझे बहुत तेज़ भूख लगी है।  जल्दी से कुछ

खाने को दो सबसे पहले आप मुझे ही भोजन परोसे। कुवेर जी गणपति जी क्रोध से परिचित थे।

उन्होंने सबसे पहले गणेश जी को भोजन की थाली लगवा दी ।

 

अब गणेश जी ने खाना शुरू किया, तो वह खाते ही गये। लोग आते थे। खाकर चले जाते थे पर एक

गणेश जी ही ऐसे थे, जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। अब तो व्यंजन भी समाप्त होने लगे। कुवेर

जी  डर  गए कि अन्य अतिथियों  को मैं कैसे भोजन करवाउँगा।

 

यह सब देखकर कुवेर जी गणेश जी को भोजन देने से इनकार कर दिया तो गणेश जी क्रोधित हो गये

 

गणेश जी क्रोधित हो गये और बोले- आपने पिताजी से कहा था – मेरे भोज से कोई अतृप्त नहीं जायेगा

पर  आपने तो अकेला मेरा भी पेट न भर पाये।

 

परेशान होकर कुवेर जी जल्दी ही गणेश जी के पिता शिव जी के पास पहुंचे और बोले हे शिवजी मेरे

भोज यज्ञ की रक्षा करो। तभी अचानक वहां गणेश जी पहुँच गये और कुवेर जी के सामने बोले पिता जी

आपने तो मुझे एक दरिद्र के यहाँ भोजन करने भेज दिया।

 

कुवेर जी ने जब अपने आप के लिये यह शब्द सुना तो वह तुरत ही समझ गये कि यह भगवान भोलेनाथ

ने मेरा अहंकार दूर करने के लिए यह सब रचा है । जिससे मैं हमेशा सत्य के मार्ग पर चलूँ। 

 

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी बात का अहंकार नहीं करना चाहिये।

 

 

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