गुस्सैल साधु ।। Hindi story on Anger ।। Hindi story of Dayanand Sarasvati
बात उन दिनों की है. जब स्वामी दयानंद फर्रुखाबाद गंगातट ठहरे हुये थे। वही उन्होंने अपनी छोटी सी कुटिया बनायी थी । कुटिया से थोड़ी दूरी पर एक झोपड़ी थी, जिसमें एक साधु रहता था । पता नहीं क्यों वह साधू स्वामी जी से बहुत क्रोधित था । हर रोज वह स्वामी जी की कुटिया के पास आकर गाली दिया करता था ।
जब वह गालियाँ देकर थक जाता तो वापस अपनी झोपड़ी में आ जाता। दयानन्द उसकी गलियां सुनकर मुस्कुराते थे और कोई जवाब नहीं देते थे ।
एक दिन किसी शिष्य ने स्वामी जी को फलों का टोकरा भेजा उन्होंने टोकरे में से कुछ फल निकाले और उन्हें एक कपडे में बाँधा और एक शिष्य से बोले – ये फल ले जाकर उस साधु को दे दो ।
व्यक्ति फल लेकर साधु के पास पहुंचा और बोला – यह फल स्वामी जी ने आपके लिये भेजे है । हालाँकि साधु स्वामी से बहुत क्रोधित था… इसलिए दयानंद का नाम सुनते ही चिल्लाने लगा।
“अरे प्रात:काल किसका नाम ले रहे हो पता नहीं अब मेरा आज का दिन कैसा जायेगा, आज मुझे
भोजन भी नसीब होगा या नहीं।”
ये फल उसने मेरे लिये नहीं किसी और के लिये भेजे होंगे। वो भला क्यूँ मुझे फल भेजेगा। मैं तो उसे रोज गलियां देता हूँ।
यह सुनकर वह व्यक्ति वापस चला गया, वहाँ जाकर स्वामी जी को पूरी बात बताई।
स्वामी जी उस व्यक्ति से बोले तुम वापस उस साधू के पास जाओ और बोलो कि आप प्रतिदिन जो अमृत की वर्षा करते हो उसमें निश्चित ही आपकी शक्ति लगती होगी। ये फल उस शक्ति को बनाये रखने के लिये ही मैंने भेजे है ताकि, अमृत वर्षा में कमी न आये ।
इस बार साधु ने सन्देश ग्रहण कर लिया और लज्जा से सर झुका लिया, साथ ही साथ वह समझ गया , कि महर्षि असभ्य को सभ्यता से, क्रूर को प्रेम से और निर्दयों को दया से जीतना जानते हैं। साधू बहुत लज्जित हुआ और उनकी कुटिया पर जाकर क्षमा याचना की ।
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि अगर कोई हमसे बिना किसी बात के नाराज़ भी है , तब भी हमें उसके साथ सामान्य व्यवहार करना चाहिए।
ऐसा करने उस व्यक्ति को अपनी गलती का एहसास हो जाएगा. और उसकी नाराज़गी खुद व खुद दूर हो जायेगी।
Speak Your Mind