नानक ने क्यूँ किया जनेऊ संस्कार से इनकार
Hindi story on Guru Nanak
हमारे देश में जितने भी महान लोग हुए हैं, वो सभी जातिगत भेद-भाव के विरोधी थे। उन्ही में से एक गुरु नानकजी थे।
गुरु नानक वास्तव में तो सिखों के प्रथम गुरु थे। लेकिन उनके द्वारा दिए गए उपदेश किसी धर्म विशेष के लिए नहीं हैं, बल्कि मानवों के कल्याण के लिए हैं।
जिस समय में गुरुनानक का जन्म हुआ था, उस समय हमारे देश में धार्मिक कट्टरता, जातिगत भेदभाव, अंधविश्वास चारों ओर फैला हुआ था। गुरु नानक इन सबके विरोधी थे।
बहुत समय पहले की बात है नानक देव के जनेऊ संस्कार का समय आ गया था इसलिए उनके पिता ने जनेऊ संस्कार के लिए कुल के पुरोहित को बुलाया।
जब पुरोहित आये तो नानक देव ने उन्हें प्रणाम किया और पूंछा- महाराज, आप जो मुझे ये सूत का धागा पहना रहे हैं. उससे क्या फायदा होगा।
इस पर पुरोहित ने कहा- ”सूत का धागा डालने से आपका न्य जन्म हो जायेगा आप नये हो जायेंगे। यह सवर्णों की पहचान है इसे देखकर लोग समझ जायेंगे कि यह कोई सवर्ण व्यक्ति है ना कि शुद्र। यह जान्ने के बाद लोग आपका सम्मान करेंगे जैसे सवर्णों का किया जाता है”
पुरोहित के उत्तर से नानक देव संतुष्ट नहीं हुए, “उन्होंने दूसरा प्रश्न पूछा-दुसरे लोगों को सवर्णों का सम्मान क्यों करना चाहिए ? और अगर ये जनेऊ टूट गया तो ?”
इसलिए पुरोहित जी ने उत्तर दिया की सवर्ण सबसे श्रेष्ठ होते इसलिए उनका सबको सम्मान करना चाहिए। और जनेऊ के टूट जाने पर उन्होंने दूसरा जनेऊ खरीदने की बात की।
नानक ने इस पर एक और प्रश्न पूछ लिया- सवर्णों को क्या ईश्वर ने श्रेष्ठ बनाया है या उन्होंने स्वयं ही खुद को श्रेष्ठ घोषित कर दिया. यह सुनकर पुरोहित थोड़ा सहम गया।
नानक ने जनेऊ डालने से इंकार कर दिया और बात को आगे बढ़ाते हुए कहा- कि जो धागा खुद टूट जाता है, जो बाज़ार में बिकता है। जो दो पैसे में मिल जाता है उससे परमात्मा की खोज क्या होगी।
नानक देव बोले इस दुनिया में सभी मनुष्य बराबर हैं ईश्वर ने न तो किसी को ऊँचा बनाया है, न नीचा। यदि उसने ऐसा किया होता, तो ऊँचे लोगों का रंग, शरीर की बनावट अलग होती। यदि शुद्र के दो हाथ हैं तो सवर्ण के चार होते।
मुझे जिस जनेऊ की आवश्यकता है, उसके लिए दया की कपास, संतोष का सूत, और संयम की गांठ होनी चाहिए। यही जीव के लिए आध्यात्मिक जनेऊ है, यह ना टूटता है, ना इसमे मैल लगता है, न जलता है, न खोता है।
नानक के ऐसे वचन सुनकर पुरोहित चुप हो गया, उसके पास कोई उत्तर नहीं था। उसने उनके पिताजी से कहा- यह सामान्य बालक नहीं है, यह आसाधारण बालक है इसे जनेऊ की कोई आवश्यकता नहीं है। इसके बाद पुरोहित और पिता दोनों नानक के शिष्य बन गए।
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धन धन श्री गुरु नानक जी की।।
बात तो सही है । लेकिन जनेऊ का जो अर्थ उन्होंने बताया मै उससे सहमत नही हु। और ये भी सही है की इस संसार में सब एक सामान रूप से आते हैं और अपने कर्मो से अच्छे या बुरे बनते है।
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