लक्ष्मी बाई का प्रजा प्रेम
Hindi story on Jhansi ki rani lakshmi bai
झाँसी की रानी लक्ष्मी बाई हमारे देश की एक ऐसी महिला थी, जो अन्य महिलाओं के लिए वीरता की मिसाल बनीं।उनके जीवन के ऊपर लिखी गयी कविता “खूब लड़ी मर्दानी वो तो झाँसी वाली रानी थी” देश भर में प्रसिद्ध है। बचपन से ही उनके दिल में देश के प्रति प्रेम की भावना थी। झाँसी की महारानी लक्ष्मीबाई केवल वीर और साहसी महिला ही नहीं थी, बल्कि वे अपनी प्रजा के सुख-दुख में भी उसके साथ खड़ी रहतीं थीं।
वे झाँसी राज्य के सभी प्रजाजनों को अपने परिवार का सदस्य मानतीं थीं। झाँसी के पास एक गाँव अब भी है जिसका नाम है, लकारा। वहां के बहुत से लोग झाँसी की सेना में सैनिक थे। एक ऐसे ही सैनिक का नाम बहादुर सिंह गुर्जर था।
रानी अपनी सेना पर बारीक़ नज़र रखतीं थीं। एक दिन उन्होंने देखा कि बहादुर सिंह छावनी में नहीं हैं। तब उन्होंने फ़ौरन अपने तोपची गुलाम गौस खां को बुलाया।
उनसे पूछा कि ”बहादुर काका छावनी में हैं नहीं, वे कहाँ चले गए हैं?”
गौस खां ने बताया- ”उनकी भतीजी की आज ही शादी है, इसलिए वे अपने गाँव चले गए हैं।”
पास ही में खड़े सेना प्रमुख ने बिना बताये गाँव भेजने के लिए रानी से फ़ौरन माफ़ी मांग ली।
उन्हें लग रहा था कि महारानी गुस्सा हो जायेंगी., लेकिन हुआ उल्टा। उन्होंने गौस खां से कहा- ”काका के गाँव मैं भी जाऊँगी।”
सेनापति और खां साहब, दोनों हतप्रभ…
लकारा में रात को 10-11 बजे के आसपास 15 घुड़सवार पहुंचे। वे सीधे बहादुर सिंह गुर्जर के घर के सामने रुके। गाँव में तहलका मच गया की शायद डाकू आ गये हैं।
बहादुर भाला लेकर आगे बढ़े और चिल्लाये की मेरे महमानों को मेरे जीते जी कोई नहीं लूट सकता। रानी घोड़े से उतरीं और ढट्टी हटा दी और बोली- काका, आपने क्या सोचा था कि मुझे यदि नहीं बुलाओगे तो मैं आउंगी नहीं।
मैं अपने लोगों के घर बिना बुलाये आ जाती हूँ। रानी को अपने सामने देखकर बहादुर सिंह भावुक हो गए। रानी के इसी प्रेम के कारण उनकी प्रजा उनके लिए जान भी दांव पर लगाने से नहीं हिचकती थी।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है, कि हमें हमारी कम्पनी या ऑफिस में काम करने वालों का हमेशा ध्यान रखना चाहिए. तभी वो भी दिल से हमें स्वीकार करेंगे।
हमें उन्हें अपने परिवार का सदस्य मानना चाहिए। और उनकी भावनाओं का ध्यान रखना चाहिए। हमें अपनी Progress के साथ उनकी progress के बारे में भी सोचना चाहिए।
महारानी लक्ष्मीबाई ने रानी होने के वावजूत एक साधारण सैनिक के घर बिन बुलाये जाने में कोई संकोच नहीं किया क्योंकि वो उन्हें अपना मानती थीं। इसी अपनेपन की वजह से उनकी सारी सेना उनके लिए जान भी देने के लिए हमेशा तैयार रहती थी। और इतिहास में उनका नाम आज भी अमर है।
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