पागल की समझदारी शिक्षाप्रद हिंदी कहानी
Hindi Story on understanding
राजमार्ग मे एक बहुत घना हराभरा वृक्ष था। जब भी राहगीर वहाँ से गुजरते थे, उस पेड़ की शीतल छाया में बैठकर अपनी थकान मिटाने के लिए वहाँ कुछ देर आराम कर लिया करते थे, और गपशप करके अपने काम पर निकल जाते थे।
एक दिन बहुत भीषण गर्मी पड़ रही थी। धरती आकाश धरती से बेहाल थे। इंसान गर्मी से परेशान हो रहे थे। उस दिन एक पागल उस पेड़ के नीचे बैठा अपनी थकान दूर कर रहा था और अपनी मानसिक परेशानियों के चलते जोर-जोर से चिल्ला रहा था, अर्थात अट्टहास कर रहा था।उसी समय अच्छे कपड़े पहने हुए सुसज्जित व्यक्ति वहाँ आया और पागल से कहने लगा-
यहाँ से हट, मुझे यहाँ आराम करना .
पागल कहने लगा-“मैं क्यों हटूं “
तब उस व्यक्ति ने कहा –
तुम जानते नहीं हो मैं कौन हूँ ?
पागल बोला- “कौन है तू”
तो उस व्यक्ति ने कहा- “मैं एक राजकीय व्यक्ति हूँ और मेरा अधिकार है मैं यहाँ विश्राम करूँगा”
पागल हँसा और दूसरी ओर चला गया। वह व्यक्ति वहाँ थोड़ी देर आराम ही कर पाया था कि वहाँ एक सन्यासी आ गये वह भी भीषण गर्मी के कारण वह भी बहुत परेशान थे।
वे वृक्ष के नीचे आये और उस व्यक्ति से बोले आप थोडा सा उधर सरक जाइये, मैं भी इस वृक्ष की थोड़ी शीतलता ले लूं और अपनी थकावट मिटा लूं ।
तो अधिकारी अकड़ा और बोला- आप जानते नहीं है मैं भी एक राजकीय व्यक्ति हूँ। मैं क्यों हटूं, मैं राजमहल में एक प्रमुख पद पर हूँ, इसलिए मैं नहीं हटूंगा।
तब सन्यासी ने हंसकर कहा – अगर तुम राजकीय पद पर हो तो, मैं भी राजगुरु हूँ, इसलिए जितना अधिकार इस पेड़ के नीचे बैठने का तुम्हारा है, उतना ही मेरा है।
दोनों में थोड़ा विवाद हुआ और दोनों की वाणी मे कठोरता आ गई।
उसी समय वह पागल आया और हंसने लगा और बोला –
पागलों की तरह लड़ क्यों रहे हो, मिल-बांट कर शीतलता का उपयोग कर लो , जो काम लड़कर नहीं होगा वह मिलवाट कर सुलझ सकता है। इसीलिए प्रेम से काम करों, दोनों की थकान दूर हो जाएगी।
इतना कहकर वह पागल वहाँ से ठहाका लगाते हुए चला गया, लेकिन उसी समय वह राजकीय अधिकारी और राजगुरु दोनों सोच में पड़ गये कि पागल वो है, या हम दोनो पागल है।
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि कई बार हम मंद वुद्धि के व्यक्ति से भी छोटी सोच रखते हैं, इसलिए हमें हमेशा समझदारी से काम लेना चाहिए।
We are grateful to Ankita Sharma for sharing this beautiful Poetry with us.
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