Change your way of thinking
Hindi story on way of thinking
एक बार की बात है। एक छोटा सा गाँव था एक बार उसमे एक महात्माजी आये। गाँव के लोग उनके पास आये। लोगों ने महात्माजी से प्रवचन देने का आग्रह किया, उन्होंने कहा कि गुरु जी आप प्रवचन दीजिये। जिससे गाँव के लोगों को सही जीवन जीने के लिए प्रेरणा मिले।
महात्माजी बोले- मैं आप लोगों को क्या प्रवचन दूं। सीधी सी बात है, जो सही है वह करो और जो गलत है उसे मत करो। हमारे विचार ही हमारे जीवन का निर्माण करते हैं।
उन लोगों में से एक ने कहा- गुरूजी हम सभी बहुत अच्छे बनना चाहते है और उसके लिए जितना संभव हो सके प्रयास भी करते हैं। मगर हम नहीं बन पाते।
महात्माजी बोले- हम इंसानों को गलतफहमी है कि हम अच्छे नहीं बन सकते और अनजाने में हम अपने ऊपर मोहर लगा लेते हैं कि हम अच्छे नहीं बन सकते। देखो भाइयों हम अपने ऊपर जैसी मोहर लगायेंगे वैसे ही तो बनेंगे।
वहाँ मौजूद लोगों को यह महात्मा की बात ठीक तरह से समझ नहीं आई। उन्होंने प्रार्थना की गुरूजी कृपया स्पष्ट करें।
तब महात्मा जी ने अपनी जेब तीन नोट निकाले।
लोगों से पूछा- ये कितने- कितने के नोट हैं ?
एक नोट दस का था। दूसरा सौ रूपये का था। तीसरा हजार का।
महात्मा जी ने पूछा- बताओ इनमें क्या अंतर है। सभी लोग चुप थे।
महात्मा जी ने समझाया कि तीनों नोट एक जैसे कागज़ पर छपे हैं। कागज़ के पहले टुकड़े से दस रूपये की चीज़ खरीदी जा सकती है। दूसरे से सौ की और तीसरे से हज़ार की।
यह कागज पर लगी मोहर के द्वारा निर्धारित हुआ है। अगर देखा जाये तो हमारा जीवन भी एक कोरे कागज़ की तरह है। अगर हम चाहे तो उस पर छोटे-मोटे गुणों और विशेषताओं की मोहर लगा सकते हैं।
और अगर हम चाहें तो तो हज़ार रूपये या उससे अधिक कीमत की विशेषताओं का विकास कर सकते हैं।
जैसी हमारी सोच होगी वैसा हमारा जीवन होगा। इस संसार सागर में हम अपने मन रूपी कागज़ पर जैसे विचारों को छापेंगे, वैसा हमारा जीवन होगा।
अगर हम अपने मन अच्छे और सात्विक विचारों को ही जगह दें। जैसे हमारे विचार होंगे वैसे ही हमारे कर्म होंगे और इस प्रकार हम हमारे जीवन को उत्कृष्टता प्रदान कर सकते हैं। सिर्फ अपने विचारों को बदल कर उनके अनुसार कर्म करके हम हमारे जीवन को उच्च बना सकते हैं।
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