निष्पक्ष-व्यवहार
Inspirational Hindi Short moral story on Honesty
एक बार की बात है। महाराष्ट्र में एक प्रकाण्ड विद्वन थे। जिनका नाम राम शाष्त्री था उनकी बुद्धिमानी और काबिलियत की वजह से उन्हें पेशवा के दरवार में प्रमुख स्थान प्राप्त था।
उस समय पेशवा के दरवार में विद्वानों को दान देने का रिवाज़ था शाष्त्रीजी को दान अध्यक्ष का पद भी प्राप्त था।
प्रत्येक विद्वान को वह अपने हाथों से दान दिया करते थे। यह काम वे बखूबी निभाते थे। दान देते वक्त वे इस बात का खास ख्याल रखते थे, कि किसी भी व्यक्ति के साथ पक्षपात न हो हर एक को वे उनकी पात्रता के अनुसार उचित दान देते थे।
वे ऐसा कोई मौका आने नहीं देते थे कि कोई भी व्यक्ति खुद को उपेक्षित महसूस करे। वे अपने व्यवहार में कभी पक्षपात नही आने देते थे, ये उनकी बिशेषता थी एक बार शास्त्री जी विद्वानों को दक्षिणा दे रहे थे, लेकिन उन विद्वानों में उनके भाई भी शामिल थे।
शाष्त्री जी दान देने का कार्य कर रहे थे। नाना फडनवीस भी वहीं थे। उन्होंने जैसे ही शाष्त्रीजी के भाई को देखा। वह शाष्त्रीजी से बोले- वह आपके सम्बन्धी है। मेरे विचार आपको उन्हें अन्य लोगों से ज्यादा दक्षिणा देनी चाहिए।
शाष्त्रीजी बोले- मेरे भाई अन्य विद्वानों की तरह ही हैं। जब मैं सबको समान दक्षिणा दे रहा हूँ, तो मैं उन्हें अधिक क्यों दूँ, यह तो अन्य विद्वानों के साथ पक्षपात होगा।
नाना फडनवीस बोले- आज मुझे बहुत ख़ुशी हो रही है, कि तुम्हारे जैसा ईमानदार व्यक्ति हमारे राज्य का दान अध्यक्ष है. तुम्हारा यह व्यवहार हमारे दिल को छू गया।
शाष्त्री जी मुस्कुराये और अपने काम में वापस लग गए।
जैसे ही दक्षिणा का कार्य संपन्न हुआ।
उन्होंने सभी विद्वानों को आदर के साथ विदा किया. परन्तु अपने भाई को अपने साथ ले गये। वहाँ उनका खूब आदर सत्कार किया।
उनका भाई खुश होकर बोला- भाई आप तो बहुत बड़े विद्वान हैं। आपके अन्दर निष्पक्षता का गुण तो है ही साथ ही साथ आप विवेकी भी हैं।
हर व्यक्ति को कैसे उपयुक्त सम्मान देना चाहिये। यह कोई आपसे सीखे।
आपने अपने दरवार का मान तो रखा ही, लेकिन मेरे रिश्ते का मान रखने में भी आप पीछे नहीं रहे।
मुझे गर्व है कि आप जैसे व्यक्ति मेरे भाई हैं. मैं जीवन भर आपके आदर्शों का अनुसरण करूँगा।
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