राममनोहर लोहिया जी का साहस Inspirational Hindi story of Rammanohar Lohiya

राममनोहर लोहिया जी का साहस

Inspirational Hindi story of Ram manohar Lohiya

राममनोहर लोहिया जी का साहस Inspirational Hindi story of Rammanohar Lohiya

राममनोहर लोहिया जी का साहस Inspirational Hindi story of Rammanohar Lohiya

Friends आज मैं डॉ॰ राममनोहर लोहिया, जो कि भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के सेनानी, प्रखर चिन्तक तथा समाजवादी राजनेता थे, उनके जीवन के एक प्रसंग के बारे में बताने जा रही हूँ। बचपन से ही देश के प्रति उनका विशेष समर्पण था। उनके पिताजी गाँधीजी के अनुयायी थे। जब भी वे गांधीजी से मिलने जाते थे, उन्हें अपने साथ ले जाते थे। इस कारण गांधीजी के विराट व्यक्तित्व का उन पर गहरा असर हुआ।

बात उन दिनों की है, जब राममनोहर लोहिया ज़र्मनी में थे। वे वहाँ हम्बोल्ट यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र में पीएचडी कर थे। उस समय भारत में स्वधीनता आन्दोलन जोरों पर था।  सत्याग्रहियों पर सरकार जो अत्याचार कर रही रही थी। वह दुनिया में किसी से छिपा नहीं था।

लोहिया जी के पिता हीरालालजी  एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे और वह भी स्वाधीनता आन्दोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा ले रहे थे। वे वहाँ हो रहे आत्याचारों की सुचना पत्र के द्वारा अपने पुत्र को देते रहते थे। जिन्हें पढ़कर लोहियाजी के मन अंग्रेजी शासन के प्रति घृणा बढ़ती जा रही थी।

उन दिनों  जिनेवा में लीग ऑफ़ नेशंस का अधिवेशन होने जा रहा था। जिसने वीकानेर के महाराजा भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। बहुत कोशिशों से उन्होंने इस अधिवेशन के दो पास हासिल किये। अपने मित्र के साथ वहाँ गए।

बीकानेर के महाराजा ने वहाँ भाषण दिया जो कि अंग्रेजी शासन की प्रशंसा चापलूसी से भरा हुआ था। भाषण के दौरान लोहिया जी ने उनकी बहुत हूटिंग की। जिसकी वजह से वहाँ के अध्यक्ष ने उन्हें सभा से बाहर निकाल दिया।

अगले दिन लोहिया जी ने सभापति को एक पत्र लिखा। जिसमें उन्होंने भगत सिंह की फांसी के बारे में लिखा और भारत में हो रहे अंग्रेजों के अत्याचार के बारे में बताया। उन्होंने उस पत्र  में भारत के प्रतिनिधि के भाषण के बारे में भी लिखा कि वह किस तरह भारत के प्रतिनिधि  होते हुए भी उनका भाषण अंग्रेजी शासन की प्रशंसा से भरा हुआ था।

उनका ये पत्र समाचार पत्र में भी छपा था। जब उनसे इस पत्र के बारे में पूछा गया तो उन्होंने जबाब दिया-

“इस पत्र को लिखने मेरा सिर्फ एक ही मकसद था कि मैं इस पत्र के द्वारा भारत में हो रहे अंग्रेजी शासन के अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठा सकूँ। दुनिया के सामने इस सच को ला सकूँ।”

आज भी हमारे देश लोहियाजी जैसे देश भक्तों की आवश्यकता जो भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठा सकें।

लोहिया जी ने  एक साथ सात क्रांतियों का आह्वान किया। वे सात क्रान्तियां थी ये थी।

1:  नर-नारी की समानता के लिए क्रान्ति।

2: चमड़ी के रंग पर रची राजकीय, आर्थिक और दिमागी असमानता के खिलाफ क्रान्ति ।

3: संस्कारगत, जन्मजात जातिप्रथा के खिलाफ और पिछड़ों को विशेष अवसर के लिए क्रान्ति।

4: परदेसी गुलामी के खिलाफ और स्वतन्त्रता तथा विश्व लोक-राज के लिए क्रान्ति।

5: निजी पूँजी की विषमताओं के खिलाफ और आर्थिक समानता के लिए तथा योजना द्वारा पैदावार बढ़ाने के लिए क्रान्ति।

6: निजी जीवन में अन्यायी हस्तक्षेप के खिलाफ और लोकतंत्री पद्धति के लिए क्रान्ति।

7: अस्त्र-शस्त्र के खिलाफ और सत्याग्रह के लिये क्रान्ति।

इन सात क्रांतियों के सम्बन्ध में लोहिया ने कहा-

मोटे तौर पर ये हैं सात क्रांतियाँ. ये सातों क्रांतियाँ संसार में एक साथ चल रही हैं। अपने देश में भी उनको एक साथ चलने की कोशिश करना चाहिए। जितने लोगों को भी ये क्रांति पकड में आये उसके पीछे पड़ जाना चाहिए साथ ही साथ उसे बढ़ाना चाहिये। बढ़ाते- बढ़ाते शायद ऐसा संयोग हो जाये कि आज का इन्सान सब नाकामियों के खिलाफ लड़ता-जूझता ऐसे समाज और ऐसी दुनिया को बना पाये कि जिसमें आतंरिक शांति और भौतिक भरा-पूरा समाज बन पाये।

 

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