कैसे कहुँ कि प्रेम क्या है प्रेम पर हिन्दी कविता Love Hindi Poem

कैसे कहुँ कि प्रेम क्या है प्रेम पर हिन्दी कविता

कैसे कहुँ कि प्रेम क्या है प्रेम पर हिन्दी कविता Love Hindi Poem

कैसे कहुँ कि प्रेम क्या है प्रेम पर हिन्दी कविता Love Hindi Poem

Love Hindi Poem

भटकने से मंजिल नहीं मिलती

ठहरने से रास्ते नहीं कटते

“प्रेम”

कैसे कहुँ,-कि प्रेम क्या है ?

सिवाय बदनामी के –

इस प्रेम में मिला क्या है

अनचाहे बोझ को ढोना

छिप छिप के अपनी कहीं बातों पे

अकेले बैठकर घंटों रोना-

पुनः गलती न करने का इरादा

जैसे हवा में पानी का बुलबुला—

 

कैसे कहूँ कि प्रेम क्या है—

हर समय तो किसी शिकारी की भांति

प्रेम ने मुझे छला है

जाल में फँसने पर –

निकलने की अकुलाहट

और न निकल पाने पर –

आत्मसमर्पण की चाहत —

 

फिर भी, जिन्दगी नहीं मिलती उपहार में

करने पर आत्मसमर्पण

हमेशा मेरा वध हुआ है

कैसे कहूँ कि प्रेम क्या है—-

 

Name: Venus Singh

Profession: Teacher

venus

We are grateful to Venus Singh for sharing this beautiful Poetry with us.

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Comments

  1. Dheeraj says:

    Hi
    Great words
    But mam why u put others thought in ur blog we love to read ur thoughts so pls do write yes

    • Jo poetry mujhe pasand aati hai vah main publish karti hoon.
      mere paas bahut sare guest post aate hain. per main selected hi daalti hoon.

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