संत की सहनशीलता ।
Moral story of good behaviour in Hindi
संत दादू दयाल अपनी सादगी और सहनशीलता के लिये सभी जगह विख्यात थे।एक बार
एक थानेदार अपने घोड़े पर सवार होकर संत के दर्शन को चल पड़े। संत दादू अपने
फटे पुराने कपड़े पहने हुये एक पेड़ की छाया में बैठे अपना भजन पूजन कर रहे थे।
अहंकारी थानेदार को यह बात समझ में नहीं आई कि ऐसा साधारण सा आदमी संत दादू दयाल भी
हो सकता है। उसने अपने घोड़े पर बैठे-बैठे चिल्लाकर कड़कदार आवाज़ में उससे पूंछा- अरे ओ बुड्ढ़े
क्या तू यह जानता है कि संत दादू दयाल कहाँ निवास करते है।
पर संत शांत बैठे रहे। तब थानेदार ने एकबार फिर दुबारा पूछा- हे आदमी तू बहरा है क्या तुझे सुनाई
नहीं दिया क्या ? मैं पूंछ रहा हूँ। संत दादू दयाल कहाँ रहते है ? इस बार भी वे चुप ही रहे। उन्होंने कोई
प्रतिक्रिया नहीं दी।
थानेदार को लगा कि वे जानबूझ कर उसकी बात को अनसुना करके उनकी बेज्जती कर रहे है। इसे
अपना अपमान समझकर वह उन्हें धमकी देने लगा|। तब भी संत दयाल कुछ नहीं बोले, तब तंग आकर
गलियां बकता हुआ थानेदार वहां से आगे बढ़ गया।
आगे बढ़कर उन्होंने एक आदमी से पूंछा- क्या तुम मुझे बता सकते हो, कि संत दादू दयाल कहाँ पर
रहते है। उस आदमी ने उसे वापिस जाने को कहा वह बोला आप जहाँ से आये है ।वही वापस जाइये, वह
आदमी उस थानेदार को संत को पास ले गया।
Inspirational Hindi story of Tolerance Power
थानेदार यह देखकर सन्न रह गया कि संत दादू दयाल वही व्यक्ति है, जिन्हें उसने कुछ देर पहले ही
गलियां बक दी थी। वह पछताते हुये बोला – महात्मा मुझे आप माफ़ कर दीजिये मैं तो आपको अपना
गुरु बनाने आया था।
मगर मैंने तो आपके साथ गलत व्यवहार का दिया संत ने मुस्कुराते हुये कहाँ – आज के ज़माने में अगर
कोई एक टके का घड़ा भी खरीदता है, तो उसे भी वह ठोक बजाकर देखता है कि वह कैसा है कही से
फूटा तो नहीं है। तुम तो गुरु पाना चाहते थे।
किसी को गुरु बनाने से पहले उसे अच्छी तरह से परख लेना चाहिये कि वह पक्का है या कच्चा है ।
तुमने भी वही किया, इसमें गलत क्या है ? यह सब सुनकर थानेदार को अपनी गलती का अहसास हो
गया।
तब लज्जित थानेदार ने कसम खाई कि भविष्य में वह किसी भी व्यक्ति के साथ दुर्व्यवहार नहीं करेगा।
इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि कभी भी किसी भी व्यक्ति के साथ जाने अनजाने में भी उसके
साथ गलत व्यवहार नहीं करना चाहिए।
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