मार्कोनी की जिद हिंदी कहानी ।
Motivational Hindi Story of Marconi
मार्कोनी को बचपन से ही इलेक्ट्रॉनिक्स वस्तुओं उलटने पलटने और जोड़ने तोड़ने बड़ा में आनंद आता था।
वे दिनभर कुछ न कुछ करते ही रहते थे। एक दिन वह अपने मित्र को एक सन्देश देना चाहते थे,उन्हें कुछ ऐसा बताना था।
जो उससे मिले बगैर संभव नहीं हो सकता था, तभी उनके दिमाग में एक बात आई कि क्या ऐसा कुछ नहीं हो सकता
कि मैं यही से अपने मित्र को सन्देश भेज के उसे यहाँ बुला लूँ। यह बात उनके दिल में घर कर गयी ।और वे इसी धुन में लग गये,
वे दूर तक सन्देश पहुंचाने की प्रक्रिया को अंजाम देने में लग गये।
पहले उन्होंने कम दूरी पर काम किया और वे घर के एक कमरे से दूसरे कमरे तक बेतार सन्देश भेजने लगे।
धीरे-धीरे वे दो मील तक सन्देश भेजने में सक्षम हो गये। इसतरह उनका सपना भी बढता गया – वे चाहते थे-
कि वे दुनियां के किसी भी कोने से कही भी सन्देश भेज पाये। इसी प्रयोग में वे दिन रात जुटे रहते थे।
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उनके पिता कहते – तुम कोई ढंग का काम करो, ताकि कुछ कमा-खा भी सको। लेकिन मार्कोनी ने अपने पिता की एक न सुनी।
उन्होंने अपने काम में अपने पिता को रोड़ा नहीं बनने दिया।
उन्होंने कम दूरी के सन्देश भेजने के बाद 1901 में इंग्लेंड से अमेरिका तक वायरलेस सन्देश भेजना तय किया।
वे अमेरीका गये।
वहां उन्होंने एरियल के रूप में बांस और रेशम की पतंग का प्रयोग किया। पर हवा ने पतंग के चिथड़े कर दिये।
उन्होंने अब भी हार नहीं मानी और ऐसी पतंग बनाई, जो हवा में टिक सके। वे कान लगाकर सुनते रहे।
पर कोई आवाज़ नहीं आई। तब उन्हें लगा कि इस बार भी उनका प्रयोग सफल नहीं हुआ और सपना अधूरा रह गया।
तभी उन्हें एक आवाज सुनाई दी। फिर एक आवाज , फिर एक आवाज। यानी, प्रयोग सफ़ल हो गया।
ये तीन बिंदु का पूर्व निर्धारित संकेत था। टेलीग्राफ की भाषा में इसका अर्थ था- ‘एस’ अक्षर ।
27 साल की अवस्था में मार्कोनी ने वायरलेस टेलीग्राफी को जन्म दिया।
उन्होंने प्रथम व्यवहारिक रेडियो सिग्नल सिस्टम का आविष्कार किया था।
इसके लिए उन्हें नोबेल पुरूस्कार भी दिया गया था।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी कोई बड़ा लक्ष्य प्राप्त करने के लिये धैर्य की आवश्यकता होती है ।
जो धैर्य रखकर कार्य में पूरी शक्ति लगा देता है उसको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता है।
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