कथनी करनी में समानता लायें । Motivational Hindi Story on Anger
एक गाँव में एक बड़े विद्वान बाबा रहते थे
वो अपने एक मठ में अपना जीवन बड़े सुख के साथ व्यतीत करते थे ।
आसपास के गांवों के लोग सत्संग के लिए उनके पास आते रहते थे ।
बाबा सबसे हमेशा एक ही बात कहते थे|
हमें क्रोध नहीं करना चहिये ।
वे क्रोध न करने को ही हर समस्या का समाधान मानते थे।
इसके बावजूद उस क्षेत्र के लोगों में लड़ाई झगडे कम नहीं हो रहे थे ।
कोई किसी की न फ़िक्र करता था न इज्जत ।
ये सब बाबाजी के समझाये अनुसार नहीं था
सब कुछ उल्टा था ।
एक दिन की बात है एक संत वहां से गुजर रहे थे ।
रास्ते में उन्हें पता चला कि उस रास्ते में बाबाजी रहते है ।
उनका मठ वही है वे उनसे मिलने के लिये चले गए ।
संत सब भक्तों के बीच ही वहां सबके के साथ बैठ गये ।
उन्होंने अपना कोई परिचय नहीं दिया
बस एक सामान्य भक्त की तरह वहां बैठ गये ।
बाबा के सामने अपना एक प्रश्न रखा ।
वे बोले- बाबाजी मुझे जीवन में प्रसन्न रहने का कोई मन्त्र बताये
जिससे हम अपनी जिन्दगी सुखपूर्वक बिताये ।
बाबा ने अपने उस भक्त से कहा कि जीवन में खुश रहना चाहते हो
तो सबसे पहले क्रोध को त्याग दो तब संत ने कहा मैं सुन नहीं पाया
आपने क्या कहा फिर से बताइए।
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बाबा ने फिर कहा हमें सुख प्राप्त करना है तो हमें क्रोध करना छोड़ना होगा ।
संत ने फिर कहा क्या नहीं करना चाहिए एक बार फिर बताये ?
बाबजी ने इस बार क्रोध वाले लहजे में कहा अरे मुर्ख बुद्धि क्रोध मत करना ।
संत ने कहा अच्छे से सुनाई नहीं दिया एक बार फिर बताने की कृपा करें ।
बाबाजी ने अपना डंडा लिया और संत के सिर पर मार दिया ।
तब संत ने बाबा जी से पूंछा – आप सबको ज्ञान बाँट रहे है
जीवन में प्रसन्न रहने के लिये क्रोध नहीं करना है|
तो आपने मुझ पर इतना क्रोध क्यों किया बताइए ।
इस बात पर बाबाजी संत से क्षमा मांगने लगे
फिर संत ने बाबाजी से कहा – एक हिंसक व्यक्ति कभी भी हिंसा का पाठ नहीं पढ़ा सकता ।
एक क्रोधी व्यक्ति कभी दूसरों में अक्रोध भाव उत्पन्न कर सकता है ।
इसीलिए सबसे पहले यह जरुरी है
कि पहले अपने अंदर से क्रोध को दूर करे फिर सबको ज्ञान देना शुरू करें ।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें हमेशा पहले अपने कर्म सुधारना चाहिए ।
उसके बाद किसीओ ओर को सलाह देना चाहिए ।
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