भारतीय समाज में नारी का सम्मान और स्थान ।। Nari ka samman
नारी शक्ति का स्वरूप :-
हमारे भारतीय समाज में नारी को देवी शक्ति माना गया है। हमारे ग्रंथो में भी नारी को पूजनीय बताया गया है। ईश्वर ने भी नारी को एक जननी के रूप में इस धरती पर भेजा है।
नारी शक्ति एक ऐसी शक्ति है, जो सारे देश को, सारे समाज को – कभी एक माँ के रूप में, कभी एक बहन के रूप में कभी एक पत्नी के रूप में तो कभी एक बेटी के रूप में… एकता के सूत्र में बांधती है।
संस्कृत में एक श्लोक है- ‘यस्य पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:
अर्थ – जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं।
इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता किसी भी देश का भविष्य एक नारी पर निर्भर करता है।
वह जिस तरह से अपने बच्चे को शिक्षा देती है। संस्कारों से सुस्सजित करती है। वही बच्चे आगे चलकर देश का भविष्य बनते हैं।
प्राचीनकाल में भी हमारे देश में रानी लक्ष्मीबाई, सीता, अनसुइया, इंद्रा गाँधी, सरोजनी नायडू, आदि ऐसी महिलायें थीं,
जिन्होंने अपने कार्यों से अपनी शक्ति का परिचय दिया। वर्तमान समय में भी नारी हर क्षेत्र में आगे है।
जब भी उसे मौका मिला है, उसने अपनी प्रतिभा दिखाई है। हमारे देश की नारियाँ किसी भी प्रकार से पुरुषों से कम नहीं हैं।
प्रतिष्ठित फोर्ब्स मैगजीन में वर्ष 2016 में विश्व की सबसे प्रतिभाशाली नारियों में भारत की चार महिलाओं का नाम शामिल है।
जिसमें स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की प्रमुख अरुंधति भट्टाचार्य, आई सी आई सी बैंक की प्रमुख चंदा कोचर, बायोकॉन
की संस्थापक किरण मजूमदार, शॉ तथा एच टी मीडिया की चेयरपर्सन शोभना भारतीय हैं।
मैगजीन की तरफ से जारी एक बयान में कहा गया,
”भट्टाचार्य जहां देश के सबसे बड़े बैंक का कार्यभार संभाल रहीं हैं वहीं कोचर भारत के सबसे बड़े प्राइवेट सेक्टर बैंक का नेतृत्व कर रही हैं।”
आज की नारियों ने सिद्ध कर दिया है कि अगर उन्हें पर्याप्त मौका और स्वतंत्रता दी जाये
तो वो खुद को और देश को उन्नति के मार्ग पर ले जाने में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं।
क्यों है नारी अपनी पहचान से इतनी दूर:-
एक तरफ हमारे देश की वो नारियाँ हैं जो आगे बढ़ रहीं हैं। सारे विश्व में भारत का नाम रोशन कर रहीं हैं।
दूसरी तरफ वो महिलाएं हैं, जो पढ़ी लिखी होकर भी घरों में बंद होकर रह गयी हैं।
पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते- निभाते कहीं न कहीं उनकी आँखों में उनके सपने अधूरे रह गए हैं।
कुछ महिलायें ऐसी हैं, जिन्हें पढने लिखने का मौका ही नहीं मिला।
उन्हें हमेशा से यही बताया गया है कि उनके जीवन का पहला उद्देश्य सिर्फ घर के काम करना,
परिवार के हर सदस्य की जरुरत को पूरा करना और बच्चे पालना है।
खुद सारे देश की जननी होकर वह अपनी पहचान से इतनी दूर क्यों है। वह समझ ही नहीं पाती कि वह आखिर क्या करे।
आज भी बचपन से लड़की को लड़की होने का एहसास दिला दिया जाता है।
इतना ही नहीं लड़कों को भी लड़के- लड़की का भेद समझा दिया जाता है।
एक तरफ बेटी को घर के काम- काज ठीक से आने चाहिए और दूसरी तरफ लड़के की पढाई पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
शुरू से ही उन्हें कमजोर बता दिया जाता है. कोई भी उन्हें आत्मनिर्भर बनने की शिक्षा नहीं देता। जब तक वो बड़ी होती हैं,
खुद को समझ पाती है. तब तक बहुत देर हो जाती हैं।
जरुर पढ़ें : – नारी का सम्मान
उनकी जिम्मेदारियां और फ़र्ज़ घर के बच्चे-बच्चे को पता हैं, मगर उनके अधिकारों की बात की जाये तो उससे सभी अनजान होते हैं।
वो खुद भी इस बात से अनजान होती हैं कि उनके अधिकार क्या हैं। उन्हें उनके अपने निर्णय लेने का भी अधिकार नहीं होता।
यह एक विडम्बना नहीं तो क्या है कि भारतीय समाज में नारी की स्थिति अत्यन्त विरोधाभासी रही है।
एक तरफ तो उसे शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है तो दूसरी ओर उसे ‘बेचारी अबला’ भी कहा जाता है ।
इसलिये नारी अपनी क्षमताओं को पहचान नहीं पाती। आज भी वह अपनी पहचान बहुत दूर है।
सामाजिक कुप्रथाएं, और कुरीतियाँ नारी के विकास में सबसे बड़ी बाधक हैं। ये सारी समस्याएं हैं, जो नारी के विकास में बाधक हैं।
हालांकि देश के कई जगहों पर और कई घरों में जागरूकता दिखाई देती है।
निवारण :
आज जरुरत हैं महिलाओं को स्वयं आगे बढ़ने की।। अपने अधिकारों को पहचानने की।
सबसे पहले महिलाओं को खुद सशक्त और आत्मनिर्भर बनना होगा। उन्हें ये जानना होगा कि उनके अन्दर असीम क्षमतायें हैं,
उनका उन्हें उपयोग करना है। उन्हें जानना होगा कि वो हर चुनौती का सामना करने में सक्षम हैं.
सबसे ज्यादा उन महिलाओं को जागरूक करना होगा जो पढ़ी-लिखी नहीं हैं या जो पढ़ी लिखी होकर भी घर की चार दीवारों में कैद हैं।
बी. आर. अम्बेडकर ने कहा है:-
मैं किसी समुदाय की प्रगति महिलाओं ने जो प्रगति हांसिल की है उससे मापता हूँ।
अम्बेडकर जी का ये कथन एकदम सही है। क्योंकि देश की आधी जनसंख्या यानि कि महिलाएं जितनी ज्यादा आत्मनिर्भर होंगी;
वह देश उतनी ही तरक्की करेगा।
इसके लिए महिलाओं और पुरुषों दोनों का जागरूक होना अति आवश्यक है।
आज की युवा पीढ़ी काफी हद तक जागरूक भी है। युवाओं में एक नया उत्साह देखने को मिलता है।
युवा वर्ग पढ़ी- लिखी और नौकरी पेशा लड़की से शादी करना चाहता है। उन्हें सिर्फ घर के काम करने वाली लड़की नहीं चाहिए।
आज के युवा अपने कदम से कदम मिलाकर चलने वाली अर्धांग्नी चाहते हैं।
इसके लिये वह घर की जिम्मेदारियां भी बांटने के लिए तैयार रहते हैं।
जरुर पढ़ें:- आखिर क्यों नहीं चाहते लोग बेटी
आज जो भी महिलायें बड़े- बड़े पदों पर हैं, जि्न्होने भी कोई मुकाम हासिल किया है।
उन्हें उनके परिवार का विशेष सहयोग मिला है। अगर उनका परिवार उन्हें सहयोग नहीं देता तो
उनके लिए इतनी उंचाई तक पहुंचना मुमकिन नहीं होता।
नारियों के विकास के लिए हमें अपने विचारों में बदलाव लाना होगा,
खासतौर पर पुरुष अगर अपनी मानसिकता में बदलाव लाकर महिलाओं को सहयोग करें उन्हें जागरूक करें।
उन्हें अपनी बराबरी में देखने का साहस कर सकें; तो हमारे देश की उन्नति और विकास सुनिश्चित है।
कहा जाता है- कुछ पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है तो दोस्तों छोड़ना है हमें अपनी पुरानी विचारधाराओं को, कुरीतियों को और अपनाना है
नयी विचारधाराओं को. नई सदी के साथ एक नये प्रकाश में आगे बढ़ना होगा। जिस प्रकाश में नर और नारी एक समान दिखाई दे।
जिस प्रकाश में नारीयों को भी निर्णय लेने का अधिकार प्राप्त हो।
सही मायनों में देखा जाये, हमारे देश के पुरुषों को देश की महिलाओं को स्वतन्त्र और आत्मनिर्भर बनाना होगा
और उनके इस रूप को स्वीकार करना होगा ; तभी हमारे भारतवर्ष की उन्नति संभव है।
मुझे आशा है कि इस लेख (Nari ka samman) को पढ़ने के बाद हर नारी अपने आपको पह्चान कर आगे बढ़ने की कोशिश करेगी।
और पुरुष चाहे वह पिता हो, भाई हो या पति हो उसकी इस कोशिश में उसे सहायता प्रदान करेंगे ।
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ये मेरे देश की नारी हिंदी कविता
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