मैराथन दौड़ की हिंदी कहानी | Olympic Game Marathon Race in Hindi
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हर चार साल बाद होने वाले खेल ओलंपिक खेल कहलाते है
आइये हम इस पोस्ट में आपके साथ ओलंपिक के एक प्रसिद्द खेल मैराथन दौड़ के बारे में बात करेंगे ।
ओलंपिक खेलों का प्रारंभ यूनान से हुआ।
बात उस समय की है, जब यूनान छोटे-छोटे राज्यों में बॅटा हुआ था ।
यहाँ के निवासीयों को खेल कूंद अत्यंत पसंद था ।
इसीलिये यहाँ के ओलंपिक नामक पर्वत की तलहटी में प्रतिवर्ष खेलों का
आयोजन किया जाने लगा ।
लोग दूर दूर से इन खेलों में भाग लेने के लिये आते थे । जो भी इन खेलों में जीत जाता था,
उसको एक अच्छा सा पुरूस्कार भी दिया जाता था । इन्हीं खेलों को लोग ओलंपिक के नाम से पुकारते थे ।
ओलंपिक खेलों में लम्बी दौड़ बहुत अधिक प्रसिद्द थी ।
आज की अंतर्राष्ट्रीय खेल – प्रतियोगिता का नाम भी इसी ओलंपिक के आधार पर रखा गया है ।
आज यह लम्बी दौड़ को हम मैराथन के नाम से जानते है । यह दौड़ 41 किलोमीटर से कुछ ज्यादा होती है ।
इस दौड़ की भी अपनी एक कहानी है ।
बहुत पुरानी बात है। ईरान में एक दारा नाम का राजा राज्य करता था ।
उसकी बहुत बड़ी सेना थी | एक बार वह राजा यूनानियों से किसी बात पर नाराज़ हो गया ।
राजा दारा दिन रात यूनान पर आक्रमण करने के बारे में सोचने लगा ताकि वह अपना बदला ले पाये ।
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युनान को जितने के लिये उसके एक नगर एथेंस पर अधिकार करना बहुत जरुरी था ।
राजा ने पूरी सेना की शक्ति के साथ एथेंस पर आक्रमण करने चल दिया ।
सबसे पहले उसकी सेना ने बड़ी मुश्किल से समुद्र पार किया ।
अब सेना एथेंस के पास पहुँच गयी । जब यह बात एथेंस निवासियों के पास पहुंची।
तो वे व्याकुल हो गये । नगर का द्वार बंद कर दिया गया क्योंकि यह सब जानते थे ।
कि दारा की सेना बहुत शक्तिशाली थी । एथेंस वालों को हराने के लिये उन्होंने स्पार्टा से मदद मांगी ।
स्पार्टा अपनी बहादुरी के लिये विश्व में विख्यात था । यह एथेंस से लगभग 152 किलोमीटर पर स्थित था ।
यहाँ जाने का रास्ता भी सही नहीं था । उन दिनों आवागमन की भी परेशानी थी ।
घोड़े पर जाने में भी रास्ता आसान नहीं था | वास्तविक समस्या यह थी कि सन्देश कैसे पहुँचाया जाये|
एथेंस के लोगों को यह विश्वास था कि स्पार्टा वाले उनकी मदद जरुर करेंगे ।
कई नव युवक सन्देश ले जाने के लिये तैयार हो गये । पर सोच समझकर फिडीपिडीज नामक
युवक को यह काम सौपा गया क्योंकि फिडीपिडीज वीर और साहसी था ।
फिडीपिडीज ने उस बर्ष हुई ओलंपिक दौड़ में पहला स्थान प्राप्त किया था ।
फिडीपिडीज बहुत अच्छे से जानता था कि यह काम इतना आसान नहीं है । लेकिन फिडीपिडीज फिर नहीं घबराया ।
वह दो तीन रातें लगातार भागता रहा ।
वह जैसे ही थककर चूर होता उसके दिमाग में विचार आता कि वह अगर बैठा तो उसका देश
परतंत्र हो जायेगा , और वह फिर भागने लगता। वह स्पार्टा पंहुचा ।
उसने उनको पूरी बात बताई और स्पार्टा वालों ने भी उनकी मदद करने के लिये हाँ कर दी ।
उसने थोडा आराम किया और वह पुनः अपने देश की और लौट गया।
एथेंसवासी उसकी प्रतीक्षा कर रहे थे । जब वह अपने देश आया और उसने सूचना दी।
तब एथेन्सवासियों की ख़ुशी का ठिकाना न था । वे युद्ध के लिये चल दिये ।
इस युद्ध में फिडीपिडीज भी शामिल हुआ और सैनिक बड़ी वीरता से लड़े।
स्पार्टा की सेना आने से पहले ही उन्होंने युद्ध जीत लिया ।
एथेंसवासियों की ख़ुशी का ठिकाना न था।
यह समाचार देने वह फिर मैराथन से एथेंस 35 किलोमीटर की दूरी पार करके गया।
नगर के द्वार बंद थे उसने ऊंचे स्वर में कहा – एथेंसवासियों खुशियाँ मनाओ, एथेंस जीत गया है ।
वह इतना थक गया था कि वह ज्यादा देर तक वहां खड़ा नहीं हो पाया उसके पैर लड़खड़ाने लगे
वह गिर पड़ा । धीरे धीरे उसकी आवाज कम होने लगी और कुछ ही पल में उसकी मृत्यु हो गयी ।
मरने के बाद भी फिडीपिडीज के चहरे पर स्वतंत्रता की चमक थी ।
यूनानी आज भी फिडीपिडीज को नहीं भूले ।
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