दान का सही मतलब
Real meaning of donation Hindi Story
एक नगर था। उसमें एक विशाल मंदिर का निर्माण होना था। उस विशाल मंदिर के निर्माण के लिए चंदे की आवश्यकता थी। इसलिए इस मंदिर के निर्माण के लिए जोर शोर से चंदा इकठ्ठा किया जा रहा था। शहर के प्रतिष्ठित लोग चंदा एकत्र करने के लिए शहर के बड़े बड़े सेठों के पास गए।
सबसे अधिक दान देने वाले का नाम दान पट्टिका में सबसे उपर मोटे-मोटे अक्षरों में लिखा जाना था।शहर के प्रतिष्ठित लोग अपने नगर के सबसे बड़े सेठ के पास पहुंचे, और अधिक से अधिक दान देने के लिए प्रेरित करने लगे और अब तक जितनी भी राशि जमा हुई थी उसमे सबसे अधिक दान राशि की रसीद जमाकर्ताओं के सामने रख दी।
तब सेठ जी ने जमाकर्ताओं से पूछा- तुम मुझसे क्या चाहते हो ?
तब उनमें से एक ने कहा कि एक सज्जन ने 11 लाख रूपये दान में दिए हैं, आप कम से कम 12 लाख रूपये अवश्य दें। ऐसा करने से दान पट्टिका में आपका नाम सबसे ऊपर लिखा जाएगा।
तब सेठ जी ने कहा इस नेक काम के लिए मैं दान तो अवश्य दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है, तब जमाकर्ता अचंभित हुए,
उन्होंने पूछा कैसी शर्त ?
सेठ जी बोले मैं भले ही सबसे ज्यादा दान दूं, मगर मेरा नाम दान पट्टिका में नहीं होना चाहिए।
आप मोटे अक्षरों में उन्हीं सज्जन का नाम दें, जिन्होंने अब तक सबसे ज्यादा रकम दी है। इसके बाद सेठ जी ने उन्हें 20 लाख रूपये दान में दिए।
उन्होंने कहा-
अगर मैं कोई भी दान, दान पट्टिका में नाम लिखवाने के लिए दूंगा तो वह दान सही रूप में दान नहीं होगा। वास्तव में वह यश की कामना के लिए दिया गया दान होता है, जो सकाम कर्म की श्रेणी में आता है। दान तो सदैव यश की कामना से ऊपर उठकर ही देना श्रेयकर होता है।
कोई भी दान जो निस्वार्थ होकर अर्थात निष्काम भाव से दिया जाता है वही सात्विक सुख और आनंद देता है।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान हमेशा दिल से देना चाहिए न कि दूसरों को दिखाने के लिए या फिर दूसरों के सामने अच्छा बनने के लिए. जब भी हम बिना दिखावे के किसी भी प्रकार का दान देते हैं, वह दान हमें आंतरिक ख़ुशी देता है.
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