ये उलझन क्यूँ बढ़ती जाती है
The best Hindi Sad shayari
ये उलझन क्यूँ, बढ़ती जाती है
साँस बस आती है
बस चली जाती है
धड़कन बस चल रही है
रुकी रुकी सी हैं राहें
दबी दबी सी हैं आहें
मंजिलों की है तलाश किसको
बस रास्ते बदल रहे हैं
उलझन कुछ उलझी हुई है
रातें भी सिमटी हुई हैं
सन्नाटे गूंज रहे हैं
कानों में कुछ कह रहे हैं
अँधेरे हैं आँखों को मूंदे
जुगनू चला आसमां को छूने
रौशनी की प्यास है किसको
तारों पे चल रहें हैं
रिश्तों को कर दिया छलनी
एक दूजे को छल रहे हैं
ये उलझन क्यूँ, बढ़ती जाती है
साँस बस आती है
बस चली जाती है
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मंजिलों की तलाश है सबको
काश जिन्दगी में अब सुकून मिलता….!!
बढ़िया लिखा है आपने.