कर्तव्य पालन ही सच्चा धर्म
Short Hindi story for OBEDIENCE
चीन में एक संत थे वह बहुत ही सादा जीवन व्यतीत करते थे और संत बेहद धार्मिक थे।
संत धर्म की शिक्षा देने के लिये विख्यात थे। बहुत से लोग उनके पास आते थे
और अपनी परेशानियों का समाधान लेकर जाते थे।
संत लोगों की परेशानियों को सुनते थे और उनकी परेशानियों के अनुकूल ही उनको शिक्षा दिया करते थे ।
उसी शिक्षा के अनुकूल वे उस व्यक्ति को कर्मशील बना देते थे । यही संत की विशेषता थी।
एक दिन की बात है जब चुंग सिन नामक एक व्यक्ति उनके पास आया। उसने संत से कहा।
कृपा कर आप मुझे कुछ शिक्षा दीजिये।
संत ने कुछ दिन उसे अपने पास ही रखा । फिर उसको दीन- दुखियों की सेवा करने के लिये लगा दिया।
वह इस कार्य को बड़ी निष्ठापूर्वक कर रहा था।
चुंग सिन बुजुर्गों की और लाचारों की बड़े दिल से सेवा करता था। उनका इलाज कराता था ।
उनको समय पर भोजन देता था। अपने इस काम से वह बहुत प्रसन्न था।
इस कार्य को करने में उसे न दिन का याद रहता था न कि रात का ।
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अपना सुख चैन भूलकर वह असहायों की मदद करने लगा। अगर किसी को कोई कष्ट होता था।
तो वो इस कष्ट को दूर करने में अपनी पूरी शक्ति लगा देता था। सेवा करते-करते काफी दिन गुजर गये ।
तब वह संत के पास गया और बोला – मैं आपके पास कई दिनों से हूँ पर आपने मुझे कोई भी शिक्षा नहीं दी।
संत मुस्कराते हुये बोले- तुम्हारा जीवन तो यहाँ रहकर धर्ममय हो गया है फिर मैं तुम्हें इस विषय में और क्या शिक्षा दे सकता हूँ ।
मैंने तुम्हें जो कार्य दिये थे, वे तुमने निष्ठापूर्वक किये ।यही सबसे बड़ा धर्म है ।
इसतरह चिंग सुंग को कर्तव्य पालन की सही शिक्षा मिल गयी।
उस दिन उसे समझ आया कि प्रत्येक कार्य को कर्तव्य का पालन समझकर करना चाहिये। धर्म पालन का मतलब है।
मंदिर या मस्जिद में पूजा या व्रत- उपवास अथवा किसी भी प्रकार का बाहरी आडम्बर नहीं होता है।
सात्विक भाव से कर्तव्य का पालन करना ही धर्म का मर्म है।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें अपना काम पूरे दिल से करना चाहिये यही हमारा कर्तव्य है।
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