संत की महानता शिक्षाप्रद कहानी
Short Hindi Story on help
एक बार की बात है, जैनाचार्य हेमचंद सुरि जो कि एक संत थे। एक शहर जिसका नाम सांभर था। वहां पधारे। वहां गुजरात के एक प्रसिद्द राजा, जिनका नाम कुमारपाल था। वे भी वहां आये.
राजा वहां अपने संत, बंधुओं के साथ जैनाचार्य जी की चरण वंदना करने वहां गए थे। राजा चाहते थे कि उनका कुछ आत्याध्मिक मार्ग दर्शन हो। राजा धार्मिक प्रकृति के थे, और अपने कार्य में निपुण थे।
आचार्य श्री हमेशा अपने कंधे पर हमेशा एक मोती खादी की चादर डाले रहते थे। वह चादर एक गरीब विधवा ने अपने हांथों से सूत कातकर बनाई थी, और उसने वह चादर आचार्य जी को प्रेम से भेट की थी। आचार्य ने उसकी प्रेम और भक्ति का आदर किया और उसकी चादर को ओढ़ लिया। अब आचार्य श्री उस चादर को हमेशा अपने साथ रखते लगे। राजा कुमारपाल ने जब आचार्य श्री को वह चादर ओढ़े देखा, तो उनसे कहा- ऐसा मोटा कपड़ा आपके शरीर पर शोभा नहीं देता। आपको यह पहने हुए देखकर मुझे शरमिन्दगी महसूस हो रही है। हमारा सारा राजपाट आपकी सेवा में मौजूद है। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आप सर्वसुविधा में रहे और अपना ज्ञान सबको वितरित करें।
तब आचार्य ने उसको उत्तर दिया और कहा – राजन तेरे राज्य की प्रजा बड़ी दरिद्र अवस्था में है, उनका तो जीवन निर्वाह करना भी मुश्किल हो रहा है। तब उनके दुःख देकर तुझे शर्म नहीं आती, तुझे उनकी परेशानियां नहीं दिखाई देती है। इस बात को सुनकर राजा की आँखे शर्म से झुक गई. राजा ने कहा- आचार्य आज मेरी आँखे खुल गई, और कहा इस तरफ तो मेरा ध्यान नहीं गया।
आचार्य ने कहा यही तो शर्म की बात है कि तुमने कभी अपने भाइयों की सेवा के बारे में नहीं सोचा ना ही उन पर ध्यान दिया। तब राजा ने उनसे हांथ जोड़कर माफ़ी मांगी और कहा-
मैं प्रण करता हूँ कि मैं प्रतिवर्ष अपने राज्य के गरीबो और जरुरतमंदों के लिये एक करोड़ रूपए खर्च करूँगा, उसके बाद राजा कुमारपाल ने 14 साल तक राज्य किया और 14 वर्ष तक अपने किये गए प्रण के मुताविक गरीबो, दुखियों, की सेवा में 14 करोड़ रूपए खर्च किये. वास्तव में आज के युग में आचार्य श्री जैसे संतों की ही जरुरत है, जो हमारे शासन-व्यवस्था की आँखें खोल सकें।
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बढ़िया पोस्ट लिखी है। मै इसी प्रकार की वैबसाइट खोज रहा था। इतना अच्छा लेख प्रकाशित करने के लिए धन्यवाद।
THANK YOU…
बहुत ही उम्दा लगी,
ऐसे ही संतो की आज आवश्यकता है।
धन्यवाद