पात्र और कुपात्र की पहचान Short Hindi Story on understanding
बहुत पुरानी बात है। संत ज्ञानेश्वर नामक एक बहुत ही पहुँचे हुये संत थे। वे अपने पास आने वाले लोगों को उपदेश देते थे, हमेशा कुछ न कुछ अच्छी सीख देते थे ।
एक दिन उन्होंने उपदेश देते हुये भक्तों से कहा – विवेक, शक्ति ओर भक्ति परमात्मा सत्पात्रों को ही देते हैं ।
तभी वहां मौजूद एक महिला उठी और बोली – ये भला कैसे हो सकता हे भगवान को सबको समान अनुदान देना चाहिये। गुरूजी आपकी ये
बात मेरी समझ में नहीं आयी।
संत ज्ञानेश्वर ने उस स्त्री की बात सुनी और चुप ही रहे।
अगले दिन संत ने उस शहर के एक मूर्ख व्यक्ति को बुलाया और कहा कि उस स्त्री के पास जाओ और उसके आभूषण मांगो।
वह व्यक्ति उस स्त्री के पास गया और उसने कहा आप मुझे एक दिन के लिये अपने आभूषण दे दीजिये, अगले दिन में आपको लौटा दूंगा।
स्त्री ने उस व्यक्ति को भगा दिया और देने से इंकार कर दिया।
थोड़ी देर बाद संत ज्ञानेश्वर खुद उसी स्त्री के पास जा पहुंचे और बोले – कृपया आप मुझे आभूषण दे दें, आवश्यक कार्य पूरा होते ही, मैं आपके आभूषण आपको वापस कर दूंगा स्त्री ने कोई भी पूछताछ नहीं की और आभूषण संत ज्ञानेश्वर को सौंप दिए।
आभूषण लेने के बाद संत ग्नानेश्वर ने उस स्त्री से पूछा – मुझसे पहले जो व्यक्ति आया था। उसे आपने उसे आभुषण क्यों नहीं दिये।
स्त्री ने उत्तर दिया , वह मूर्ख व्यक्ति आभूषण देने लायक ही नहीं था उसे मैं कैसे अपने आभूषण दे सकती थी ?
स्त्री की बात सुनकर संत ज्ञानेश्वर धीरे से मुस्कुराये फिर बोले –बहन ! कल आपने मुझसे जो प्रश्न किया उसका यही उत्तर है।
जब आप सामान्य से आभूषण एक ऐसे व्यक्ति को नहीं देना चाहती जो इसके लायक नहीं है तो, आप खुद सोचिये परमात्मा अपने दिव्य अनुदान कुपात्र को कैसे सोंप सकते हैं !
परमात्मा भी तो परिक्षण करेंगे कि कौन उनके अनुदान के लायक है और कौन नहीं।
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें किसी भी चीज़ को पाने की इक्षा रखने से पहले उसके लायक बनना चाहिए। हम जो पाना चाहते हैं अगर हम उसके लायक बनने की कोशिश करते हैं तो वह पाने में पमात्मा भी हमारी मदद करते हैं।
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