मारथा की नृत्य शैली
Short motivational Hindi story of Martha Graham
बहुत पुरानी बात हे एक लड़की थी जिसका नाम मारथा था। उसे बचपन से ही डान्स करने का बहुत शौक था उसके पिता डॉक्टर थे। वे विकार से ग्रस्त मरीजों को अंग संचालन के व्यायाम सिखाते थे।
मारथा को अपने पिता से नृत्य सीखने की इजाजत नहीं मिली। दरअसल मारथा एक ईसाई परिवार की थी। जिस ईसाई पंथ से उसका परिवार जुड़ा था उसमें नृत्य की मनाई थी। पर मारथा का मन नहीं माना , उसे डान्स का बहुत शौक था, सो उसने अपने पिता की आज्ञा लेकर कला से जूड़े एक स्कूल में दाखिला ले लिया।
उसके बाद उन्होंने ‘टेड शॉन ‘ के साथ रहकर पेशेवर नृत्य करना शुरू कर दिया। टेड शॉन ने खास उनके लिये ‘जलियल’ नामक नृत्य तैयार किया । जब यह नृत्य मारथा ने किया तो इस नृत्य में मार्था की बहुत प्रशंसा हुयी । इसके बाद मारथा ने नृत्य में आगे बढ़ने के लिये बहुत मेहनत की ।
एक दिन ऐसा आया जब उनकी मेहनत रंग लाई सन 1926 में उसके अथक प्रयास के बाद उन्होंने अपनी कम्पनी स्थापित की जिसका नाम ‘मारथा ग्राहम डांस’ रखा । उन्होंने नृत्य पर खूब प्रयोग किया जिसके कारण वह बहुत लोकप्रिय हो गई, उन्होंने नृत्य को अध्यात्म से जोड़ दिया।
नृत्य की इस शैली का पश्चिम नृत्य में अभाव था। मारथा ने नृत्य को अनेक शैलियों में विकसित किया इसमें फ्रंटियर, एलार्थन स्प्रिंग, सेरेकीम डायलॉग ओर लेमानरेशन शामिल है, ये शैलियां समय के साथ विकसित होती गई । नृत्य विशेषज्ञ इनमें से अनेक शैलियों को अमरीका के सांस्कृतिक इतिहास की महत्वपूर्ण उपलब्धि मानते है।
अमेरिका में मारथा ऐसी पहली नृत्यांगना थी जिन्हें वाईट हाउस में नृत्य करने का अवसर प्राप्त हुआ था। उन्हें देशी और विदेशी अनेक पुरस्कार मिले। मारथा ने जिस नृत्य शैली का आगाज किया, वह आज आधुनिक नृत्य शैली कहलाती हे उन्हें ‘ नृत्य की पिकासो’ कहा जाता हे। मारथा ने अपनी कड़ी मेहनत ऒर लगन से यह साबित कर दिया कि इस दुनिया मे कुछ भी असंभव नहीं होता हे।
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