सफ़र दर सफ़र हिंदी कविता
Short Poem in Hindi
सफ़र दर सफ़र
अंत नहीं होता ये
अनंत का सिलसिला
फिर भी छोर तो होगा
कहीं तो होगी सीमा या परिधि
कहाँ की ओर है लक्ष्य
केंद्र को खोजना या
परिधि में घूमना
जो भी हो…
अन्धापन हर जगह बुरा है
कहीं सीमाओं को खीचने का अंधापन
कहीं केंद्र तक पहुँचने का अन्धापन
कहीं परिधि को लांघने का अंधापन
कहीं युग की मर्यादा का अंधापन
इस उम्मीद में
कि मैं खींच दूँगी
इस विशाल अन्तःस्थल
मन के अंतरिक्ष में
चार दिशायें
और नहीं भटकुंगी
यूँ ही चारों ओर
सफ़र… दर…सफ़र…
Name: Venus Singh
Profession: Teacher
We are grateful to Venus Singh for sharing this beautiful Poetry with us.
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