Swami Vivekananda Chicago Speech in Hindi स्वामी विवेकानंद का शिकागो भाषण
स्वामी विवेकानंद द्वारा 1893 में शिकागो में दिया गया ऐतिहासिक भाषण आज मैं आपके साथ Share करने जा रही हूँ।
अमेरिका के भाइयों और बहनों
आपके स्नेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा हृदय अपार हर्ष से भरपूर हो गया है। मैं आपको दुनिया की सबसे
पौराणिक संत परंपरा की तरफ से धन्यवाद देता हूं। मैं आपको सभी धर्मों की जननी की तरफ़ से धन्यवाद देना
चाहता हूँ। मैं आपको सभी जातियों के लाखों करोड़ों हिंदुओं की तरफ़ से धन्यवाद देता हूँ।
मैं इस मंच पर उन सभी वक्ताओं को धन्यवाद देना चाहता हूँ जिन्होंने कहा कि दुनिया में सहनशीलता का विचार
पूरब के देशों से फैला है।
मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे देश से हूँ जिसने सारी दुनिया को सहनशीलता और सार्वभौमिक स्वीकृति का
पाठ पढ़ाया है। हम न केवल सार्वभौमिक स्वीकृति में विश्वास रखते हैं, बल्कि हम विश्व के सभी धर्मों को सत्य रूप से
स्वीकार भी करते हैं।
मुझे गर्व महसूस होता है कि मैं एक ऐसे देश से हूँ, जिसने इस धरती के सभी देशों और धर्मों के परेशान और
सताए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने उन इस्त्राइलियों की
पवित्र स्मृतियां संजोकर रखी हैं। जिनके मंदिरों को रोमनों ने तोड़ फोड़ कर खंडहर बना दिया और
तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली।
मुझे इस बात का भी गर्व है कि मैं उस देश से सम्बंधित है जिसने महान पारसी देशों को शरण दी और उनके
अवशेषों को अब भी बढ़ावा दे रहा है।
भाइयों और बहनों मैं आपको उस श्लोक की कुछ पंक्तियाँ सुनाना चाहूँगा जिसे मैंने बचपन में स्मरण कर लिया था,
और जो रोज करोड़ों लोगो द्वारा हर दिन दोहराया जाता है।
जिस तरह से अलग-अलग स्त्रोतों से निकली विभिन्न नदियां अंत में समुद्र में जाकर मिलती हैं,
उसी तरह से मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वे देखने में भले ही सीधे या टेढ़े-मेढ़े लग
सकते हैं , पर सभी भगवान तक ही जाते हैं।
वर्तमान सम्मेलन जोकि आज तक की सबसे विशेष सभाओं में से है,
गीता में बताए गए इस सिद्धांत का प्रमाण है :
जो भी मुझ तक आता है, चाहे वह कैसा भी हो, मैं उस तक पहुंचता हूं। लोग चाहे कोई भी रास्ता चुनें, अंत में
मुझ तक ही पहुंचते हैं।
सांप्रदायिकता, कट्टरता, हठधर्मिता और इसके भयानक वंशज, जो कि लम्बे समय से पृथ्वी को अपने शिकंजों में जकड़े हुए हैं।
इन सभी ने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है, कितनी बार ये धरती खून से लाल हो चुकी है, कितनी बार सभ्यताओं का विनाश हुआ है
और कितने देश नष्ट हुए हैं।
अगर ये सभी भयानक राक्षस नहीं होते तो आज मानव समाज कहीं ज्यादा उन्नत होता। लेकिन अब इनका समय पूरा हो चूका है,
और मुझे पूरी उम्मीद है कि आज इस सम्मेलन का शंखनाद सभी हठधर्मिता, हर तरह के क्लेश, चाहे वो तलवार से हों या कलम से,
और हर एक मनुष्य, जो एक ही लक्ष्य की तरफ बढ़ रहा है ; सभी मनुष्यों के बीच की दुर्भावनाओं का विनाश करेगा।
स्वामी विवेकानंद
Best speech by swami vivekanand
Thank you…
Great legend. I really inspired by this. Thanks for sharing this