गुरु पूर्णिमा क्यों मनाते हैं Why we celebrate guru purnima in hindi
Friends गुरु के बिना हमारा जीवन अधूरा है इसलिए विशेष गुरु को सम्मान देने के लिए गुरु पूर्णिमा का विशेष त्योहार हम मनाते हैं
गुरु पूर्णिमा एक नेपाली और भारतीय त्योहार है जो आध्यात्मिक गुरुओं द्वारा अपने शिष्यों को शिक्षा देने के लिये समर्पित है यह त्योहार परंपरागत रूप से हिंदुओं, जैन, मारवाड़ी और बौद्धों द्वारा मनाया जाता है, ताकि वे अपने शिक्षकों के प्रति सम्मान कर सकें और अपने गुरुओं के लिये प्यार व्यक्त कर सकें।
यह उत्सव हिंदू महीने अषाढ़ (जून-जुलाई) में पूर्णिमा दिवस (पूर्णिमा) पर मनाया जाता है यह भारत और नेपाल के हिंदू कैलेंडर में भी दर्शाया गया है। यह उत्सव गुरु के अनुष्ठान के सम्मान के साथ शुरू होता है।
इस दिन का महत्त्व अन्य किसी दिन की तुलना में शिष्यों के लिये अत्याधिक माना जाता है। गुरु दो शब्दों से मिलकर बना है,पहला गु का अर्थ है अज्ञानता तथा रु का अर्थ है उस अज्ञान को मिटाने वाला अर्थात् एक गुरु वह है, जो हमारी अज्ञानता के अंधेरे को हटा देता है।
कई लोगों यह मानते है कि गुरु वह है जो हमारे जीवन का सबसे जरूरी हिस्सा है। इस दिन, शिष्य गुरु की पूजा करते हैं या अपने गुरु के (आध्यात्मिक मार्गदर्शन) का सम्मान करते हैं।
धार्मिक महत्व के अलावा, भारतीय त्यौहार और विद्वानों के लिये भी इस दिन का बहुत महत्व है। भारतीय शिक्षाविदों ने अपने शिक्षकों और विद्वानों को याद करते हुए अपने शिक्षकों का धन्यवाद करने के लिये इस दिन को मनाते है।
परंपरागत रूप से यह त्योहार भगवान बुद्ध के सम्मान में बौद्धों द्वारा मनाया जाता है, उन्होंने इस दिन भारत के उत्तर प्रदेश में सरनाथ नामक स्थान पर अपना पहला उपदेश दिया था।
योग परंपरा में तब से इस दिन को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है। जब शिव पहले गुरु बने थे,
कई हिंदू महान ऋषि व्यास के सम्मान में दिन को मनाते हैं,
व्यास जी को प्राचीन हिंदू परंपराओं में सबसे महान गुरुओं में से एक के रूप में देखा जाता है, जो गुरु-शिष्य परंपरा का प्रतीक है।
ऐसा भी माना जाता है कि व्यास न केवल इस दिन पैदा हुये थे, बल्कि षाढ़ सुधा पद्यमी परब्रह्मा सूत्र लिखना शुरू कर दिया था, जो कि इस दिन समाप्त हुआ था।
इसलिये इसे वेद व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है| भारतीय शास्त्रीय संगीत और भारतीय शास्त्रीय नृत्य के शिक्षक, गुरु शिष्य परम्परा का पालन करते हैं।
दुनिया भर में लोग इस पवित्र त्यौहार का जश्न मनाते हैं। हम कह सकते है कि हर युग में गुरु मान्य रहे हैं और रहेंगे। यहाँ तक कि संत
कबीरदास ने भी गुरु का महत्त्व गोविन्द से बढ़कर बताया है।
अर्जुन ने तो गुरु द्रोणाचार्य की मूर्ति बनाकर उनके सामने धनुर्विद्या सीख ली।
आज के जमाने महान क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर ने भी अपने गुरु रमाकांत अचरेकर का पालन किया।
शिष्य अपनी परीक्षाओं में सफल होने का कारण सिर्फ गुरु को बताता है। गुरु ही शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं और उन्हें सही रास्ता दिखलाते हैं।
हर क्षेत्र में गुरु शिष्य को निपुण बनाता है। जैसे खेल, अत्याधमिक, शिक्षा आदि।
गुरु की हमेशा यही मनोकामना होती है, कि उनका शिष्य हमेशा उन्नति करे और उसका नाम दुनिया में आगे बढ़े।
पुराने जमाने के गुरुकुल से लेकर आज के जमाने के विद्यालय तक गुरु का एक अलग स्थान है।
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु, गुरुः देवो महेश्वरा
गुरु साक्षात् परब्रम्हा, तस्मै श्री गुरुवे नमः
गुरु पर कविता देखने के लिए यहाँ क्लिक करें
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